मैं जाननहार, ज्ञायक हूँ | Main jananhaar gyayak hun

मैं जाननहार, ज्ञायक हूँ ज्ञायक ही हूँ।
ज्ञान मात्र से जनाय, सहज ज्ञेय ही हूँ ॥टेक॥

प्रमत्त नहीं, अप्रमत्त नहीं मैं।
ज्ञान मात्र ज्ञायक, मैं ज्ञायक ही हूँ॥1॥

अशुद्ध नहीं, शुद्ध होता नहीं मैं।
निरपेक्ष-त्रिकाल, शुद्ध ही हूँ॥2॥

दुःखी नहीं, सुखी होता नहीं मैं।
स्वयं सिद्ध, सर्वतः सुखमय ही हूँ॥3॥

कर्त्ता नहीं हूँ, अकर्त्ता के पक्ष से।
न्यारा, अकर्त्ता स्वरूपी ही हूँ॥4॥

कर्त्ता भी मैं ही, कर्म भी मैं ही।
अनुभूति रूप, एक ज्ञायक ही हूँ॥5॥

ज्ञायक ही सहज, स्व ज्ञेय है मेरा।
ज्ञान में जनाय रहो, ज्ञायक ही हूँ॥6॥

मोहादि मेरे, कोई न लगते।
चिन्मात्र तेज पुंज, ज्ञायक ही हूँ॥ 7॥

आनन्द का सागर हिलोरें लेवे।
आनन्दमयी मुक्त, ज्ञायक ही हूँ॥ 8॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: Swarup Smaran

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