मां जिनवाणी ज्ञायक बताय दियो रे
आनंद भयो भारी आनंद भयो रे।। टेक ।।
मैं भीग गयो भीग गयो भीग गयो रे ।।
काल अनादि से भव भव भ्रमता
जनम जनम के बहु दुख सहता
अब समझा शुद्धातम दुख भाग गयो रे ।
आनंद भयो…रे ।।
कोई कामना रही न बाकी,
निज महिमा सर्वोत्तम आंकी ।
अब चैतन्य चैतन्य भास रहो रे ।
आनंद भयो…रे।।
षट द्रव्यों के धर्म निराले
चेतन तुम हो जानन हारे
व्यर्थ चिंता थी छूटी आनंद भयो रे।
आनंद भयो…रे ।।
रचयिता:- ब्र० रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’