लोभ तजो दुःखदायी | lobh tajo dukhdayi

आत्मन्‌! लोभ तजो दुःखदायी ॥ टेक ॥

विषयों के लोभी जीवों ने कहीं शान्ति नहीं पायी।
जिन निज ज्ञायक विषय बनाया, परम तृप्ति उपजायी॥1 ॥

आत्मख्याति जिनके उर प्रगटी, अक्षय मंगलदायी।
जगत ख्याति की चाह सहज ही, उनके चित्त न आयी॥ 2॥

साम्य भाव का लाभ हुआ है, निज प्रभुता प्रगटायी ।
संतोषामृत पान करें नित, बोधि समाधि सु पायी ॥ 3॥

ज्ञेय-लुब्धता भी नहीं होवे, सहजहिं थिरता आयी।
ध्रुव अनुपम शिवपद प्रगटाओ, भव सन्तति विनशायी ॥ 4॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण

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