स्याद्वाद से समाधान
एक बार दतिया के शक्तिशाली राजा विश्वलोचन ने अपने राज्य के समस्त धर्मगुरुओं को बुलाकर आदेश दिया-“आप लोग जब तक अलग-अलग मान्यताएं छोड़कर सब एकमत नहीं हो जाते, तब तक कारागृह में रहेंगे।”
वे लोग कुछ भी उत्तर न दे पाने से कारागृह में बन्द कर दिये गये।
कुछ ही दिनों में वहां एक दिव्यांशु नामक विद्वान आया। राजा ने कुशलक्षेम पूछने के पश्चात् पूछा-“आपको हमारी नगरी कैसी लगी?”
विद्वान्- “नगरी तो सुन्दर है परन्तु बाजार में अनेक दुकानें ठीक नहीं हैं। सबको मिलाकर एक दुकान बना दी जाये। इसी प्रकार विद्यालयों में अनेक कक्षाओं की जगह एक हाल में सामूहिक पढ़ाया जाये। चिकित्सालय के भी अनेक विभाग समाप्त कर दिये जायें तो कितना सुन्दर और सरल हो जाते।”
राजा- “ये न तो सम्भव है और न व्यावहारिक।”
विद्वान्- “तब फिर सभी मनुष्यों के विचार समान कैसे हो सकते हैं? चारों गतियों से आने और चारों गतियों में जाने वाले जीवों के परिणाम एवं विचार एक-से कैसे होंगे और मुक्ति जाने वाले जीवों के परिणाम तो सबसे अलग ही होंगे। आपकी सबको एकमत कर देने की कल्पना कैसे सम्भव है ?”
राजा को अपनी भूल समझ में आ गयी और उसने सभी को कारागृह से मुक्त कर दिया।
माध्यस्थ-भावपूर्वक रहना ही हितकर है। जिज्ञासु जीवों को उपदेश देने से, जो वस्तुस्वरुप को समझते जायेंगे, वे सहज मोक्षमार्गी होते जायेंगे।