लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

सही पुरुषार्थ

एक युवक रघुवीर, मजदूरी करके अपने कुटुम्ब का पालन करता था। उसे कुसंगति के कारण बीड़ी पीने और गुटका खाने की आदत पड़ गयी। कुछ वर्षो तक तो उसे मालूम नहीं पड़ा। धीरे-धीरे उसका मुँह खुलना कम हो गया। डॉक्टर को दिखाने पर मालूम पड़ा कि कैंसर का प्रारम्भ हो गया है। यह जानकर वह अत्यन्त घबराया और चिन्तित हुआ।
सौभाग्य से वह जैन विद्यालय में मजदूरी करने गया। वहाँ नैतिक शिक्षा शिविर लगा था। उसमें विद्वान एवं कई चिकित्सक आये थे। उसने उनके व्याख्यान सुने। उसका मनोबल बढ़ा और उसने वहीं बीड़ी, गुटका आदि का त्याग कर दिया। चिकित्सक के परामर्श से सौम्य ओषधियों एवं भोजन सुधार से, उसने अपने शरीर का शोधन किया। पन्द्रह ही दिनों में उसे अत्यन्त लाभ प्रतीत हुआ। वह उत्साह से प्रातः शीघ्र उठता। भगवान का स्मरण एवं मेरी भावना आदि का पाठ करता। फिर मिट्टी-पानी की चिकित्सा,उबली सब्जियाँ, रोटी आदि लेता। प्रसन्नता से अपना कार्य करता। विद्यालय संचालक ने भी उसको स्थाई कर्मचारी के रुप में रख लिया था। वे उससे भारी काम नहीं कराते। उसे पुस्तकालय से अच्छी पुस्तकें भी पढ़ने को देते।
लगभग दो माह बाद उसने जाँच करायी तो उसे प्रसन्नता भी हुई और आश्चर्य भी। उसके कैंसर की संभावना समाप्त हो चुकी थी। लगभग छह माह में पूर्ण स्वस्थ हो गया।
अब वह और उसका परिवार, जैन विद्यालय को अपनी जन्मभूमि मानता। जहाँ भी हो सके अपनी सेवाएं देता। माँसहार, नशा और जुआ आदि का त्याग करने के अभियान चलाने वाली समिति की ओर से वह इसी पुनीत कार्य में समर्पित होकर लगा रहता। इनकी बुराइयों को बहुत अच्छी तरह समझाकर सामने वाले को इन दुर्व्यसनों का त्याग करने के लिए तैयार कर ही लेता।

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