परोपकार
एक युवक योगेश, अपनी माँ के साथ रहते हुए गरीबी के दिन काट रहा था। पिताजी छोटेपन में ही परलोक सिधार गये थे। एक दिन माँ ने कहा -“दूर जंगल में स्थित मन्दिर में एक देव रहता है, उससे गरीबी दूर करने का उपाय पूछ कर आओ।”
योगेश चल दिया, परन्तु रात्रि होने से एक गाँव में एक घर में ठहर गया। वहाँ गृहस्वामी ने अतिथि समझ कर सुलाया और बातें करते हुए कहा -“मेरा भी एक प्रश्न देव से पूछ कर आना की मेरी युवा लड़की बोलती नहीं है, वह कब बोलेगी या नहीं बोलेगी ?”
आगे चलकर सांयकाल दूसरे गाँव में रुक गया। एक बाग के स्वामी ने अपना प्रश्न पूछ कर आने के लिए कहा कि उसके एक आम के पेड़ की वृद्धि क्यों नहीं होती ?
योगेश चलते हुए तीसरे दिन मन्दिर में पहुँच गया। वहाँ पूजा भक्ति करने के बाद बैठा ही था कि देव ने कहा -“मात्र दो प्रश्न पूछ सकते हो।” तब उसने पहले बाग के स्वामी का प्रश्न पूछा।
उसके उत्तर में देव ने कहा -“उसी पेड़ की जड़ों के समीप, धन के कलश है, उन्हें निकालो तब वृक्ष बढ़ेगा और फलेगा।”
दूसरा प्रश्न पूछने पर कहा -“वह लड़की उसके पति का मुख देखकर बोलने लगेगी।” योगेश अपना प्रश्न पूछे बिना ही चल दिया। बाग में आकर उसके कहने से वहाँ खोदने पर चार कलश निकले। तब प्रसन्न होकर बाग के स्वामी ने दो कलश उस युवक को दे दिए।
दूसरे गाँव आने पर वह उत्तर बता ही रहा था कि वह लड़की आकर बोलने लगी। तब गृह स्वामी ने उस युवा के साथ उसका विवाह कर दिया। सम्मान सहित योग्य सामान भी दिया और गाड़ी से उसे उसके घर पहुँचाया। माँ देखकर प्रसन्न हुई तथा उसने कहा -"यह तुम्हारी स्वार्थ-त्याग और परोपकार-वृत्ति का ही फल है; अतः जीवन में धैर्य और धर्म कभी नहीं छोड़ना।"