लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

नैतिक शिक्षा

एक काॅलेज के प्राचार्य नवीनचंदजी नैतिक विचारों वाले योग्य प्रशासक थे। उनके बंगले में आम, अमरूद, अनार के पेड़ थे और कुछ टमाटरादि सब्जी की क्यारियां थी। काॅलेज की भी बहुत-सी जमीन में खेती होती थी।

लड़के खेत में से भी कभी गन्ना, चना, मटर आदि चोरी से खा लेते थे। उनके द्वारा कई बार समझाने पर भी चार-छह लड़के नहीं माने। एक रात्रि लड़कों ने चोरी से बंगले के पेड़ से कुछ आम खाये, कुछ पता नहीं चला और चौकीदार भी सोता रहा।
परन्तु प्रात: प्राचार्यजी अनशन पर बैठ गये। एक दिन तो कोई कुछ न बोला। दूसरे दिन लड़के चौकीदार के समीप पहुंचे तो वह बोला-“अब क्यों आये हो? मैं तो तब ही जाग गया था, जब तुम लोग घुस थे और फल तोड़ना प्रारम्भ किया था, परन्तु साहब ने मुझे इशारे से मना कर दिया।”
लड़के घबराये । विचारा कि- साहब को सारी जानकारी है। चुपचाप ऑफिस में पहुंच कर पैर पकड़ कर रोते हुए क्षमा मांगने लगे।
साहब- " माता-पिता किस आशा से पढ़ते भेजते हैं। यदि नैतिकता ही नहीं सीख सके तो अन्य शिक्षा से क्या होगा ? भ्रष्टाचार बढ़ाओगे । अपना अहित तो करोगे ही, समाज और देश के भी पतन के कारण बनोगे।
विषय का ज्ञान तो उसी क्षेत्र में काम आता है, परन्तु नैतिकता (ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा, विनय, सेवा भावना) तो सर्वत्र काम आती है। इसी से तो व्यक्ति और देश की प्रतिष्ठा बढ़ती है। विषय के ज्ञान का भी सदुपयोग होता है।"
उसके पश्चात काॅलेज में कभी इस प्रकार के चोरी आदि के प्रसंग नहीं बने। प्राचार्यजी का समय-समय पर नैतिकतापूर्ण सम्बोधन, काॅलेज की पहिचान ही बन गया।

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