लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

लोभी जौहरी

एक सड़क किनारे स्थित झोपड़ी में सीधा-सा मजदूर रघु, अपने परिवार सहित रहता था। एक दिन उसे जंगल में एक चमकदार पत्थर मिला, जिसे उसने चमक के कारण बच्चे के खेलने के लिए उठा लिया। वास्तव में वह पत्थर नहीं, कीमती हीरा था।
एक दिन दरवाजे पर बच्चा उस हीरे से खेल रहा था। उधर से एक लोभी जौहरी धनपाल निकला। उसने देखकर रघु को बुलाया और वह चमकदार पत्थर, पाँच सौ रुपये में माँगा। इससे वह समझ गया कि यह कोई कीमती रत्न है। उसने कहा पाँच हजार में दूँगा। जौहरी एक हजार, दो, तीन और चार हजार कह कर आगे बढ़ गया। उसने सोचा यहाँ कौन लेगा ? लौट कर आऊँगा,तब अपने आप दे देगा।
होनहार की बात, तभी ईमानदार जौहरी जिनपाल उधर से निकला। उस मजदूर ने उसे वह पत्थर दिखाया। तब उसने दस हजार देकर, उसे उसकी दुकान पर आने की कह कर, वह हीरा ले लिया।
जब उधर से लोभी जौहरी धनपाल वापस आकर पाँच हजार में ही माँगने लगा तब उसने समस्त हाल कहा।अब क्या हो सकता था ? लोभवश ठगने के भाव के कारण वह लाभ से वंचित रहा। जब मजदूर रघु जौहरी जिनपाल की दुकान पर गया तो उन्होंने परख कर, उस हीरे के पचास हजार रुपए ओर दिये।
"असंतुष्ट व्यक्ति प्राप्त अवसर एवं सामग्री का भी सदुपयोग नहीं कर पाता। उसकी वृत्ति पागल कुत्ते की भांति हो जाती है जिसे एक क्षण भी न चैन है और न स्थिरता।"

3 Likes