लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

व्यर्थ हैं विकल्प

एक व्यक्ति को व्यर्थ वस्तु खोजने का विकल्प आ गया। उसने सोचा-“मिट्टी व्यर्थ है।”
मिट्टी बोली-“मेरे बिना तो जनजीवन की कल्पना ही नहीं हो सकती। रहने का स्थान-धरती है। खाद्य-सामग्री खेतों और बागों में पैदा होती है। धातुएं मिट्टी में से निकलती हैं आदि।”
उसने सोचा कि पत्थर बेकार है। पत्थर बोला-" भवनों, मन्दिरों का निर्माण पत्थरों से ही होता है। आप जिन मूर्तियों की पूजा करते हैं, वे पत्थर से ही निर्मित हैं।"
उसने विचारा कि कूड़ा, विष्टा आदि व्यर्थ है।
उत्तर मिला-" खाद आदि इन्हीं की बनती है।"
प्रकृति में एक से दूसरे पदार्थो का निमित्त- नैमित्तिक सम्बन्ध है, इसी से विश्व की स्थिति है। संसार के कार्य चल रहे हैं। व्यवहार से हर पदार्थ का उपयोग है।
उसने एक साधु से पूछा, तब गम्भीर होते हुए साधु ने कहा-"परपदार्थो में अच्छे-बुरे की कल्पना ही मिथ्या है। व्यर्थ तो हमारे मोह और कषायें हैं, जिनसे न स्वयं को सुख, न दूसरों को सुख। मिथ्या अहंकारादि दुर्भाव स्वयं के लिए दुःख के कारण हैं और इनके वशीभूत होकर होने वाली प्रवृत्तियां, दूसरों के लिए दुःख का निमित्त होती हैं।"

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