लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

नारियल जैसा

एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा-“महापुरुष अनुकूलताओं तथा प्रतिकूलताओं में अप्रभावित कैसे रहते हैं?”
तब गुरु ने कच्चा और पका हुआ एक-एक नारियल मँगाया और उसे फोडऩे के लिए कहा। पके नारियल मे तो गिरी का गोला सीधा अलग निकल आया और कच्चे नारियल की गिरी,नरेटी से चिपकी हुई थी, वह टूट-टूट कर निकल रही थी।
तब गुरु बोले- महापुरुष पके नारियल की भाँति, शरीर से भिन्न, स्वयं को चैतन्य स्वरूप आत्मा अनुभवते हैं। उन्हें भेद वर्तता हैं; अतः वे बाहर के प्रसंगों से अप्रभावित बने रहते हैं, क्षुब्ध नहीं होते।
अज्ञानी सामान्यजन शरीर से चिपके रहते हैं अर्थात् अपने को और शरीर को एक मानते हैं; अतः उन्हें क्षोभ अर्थात् हर्ष-विषाद होते रहते हैं, तब राग- द्वेष भी होते ही हैं। तत्त्वज्ञान के अभ्यास बिना न मोह मिटता है और न कषायें।
अतः हम ज्ञानाभ्यास के नाम पर भी मात्र ऊपरी अध्ययन में ही न लगे रहें; अपितु दुर्लभ अध्यात्ममय जिनशासन को प्राप्त कर, भेदज्ञान और स्वानुभव का उद्यम करें, वैराग्य भावना भायें, संयम की साधना करें, यही श्रेयस्कर है।

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