समयसार कलश l Samaysar Kalash (Sanskrit +Arth) with Audio

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(शार्दूलविक्रीडित)
त्यक्त्वाऽशुद्धिविधायि तत्किल परद्रव्यं समग्रं स्वयं
स्वद्रव्ये रतिमेति यः स नियतं सर्वापराधच्युतः ।
बन्धध्वंसमुपेत्य नित्यमुदितः स्वज्योतिरच्छोच्छल-
च्चैतन्यामृतपूरपूर्णमहिमा शुद्धो भवन्मुच्यते ।।१९१।।

श्लोकार्थ : — [यः किल अशुद्धिविधायि परद्रव्यं तत् समग्रं त्यक्त्वा ] जो पुरुष वास्तवमें अशुद्धता क रनेवाले समस्त परद्रव्यको छोड़कर [स्वयं स्वद्रव्ये रतिम् एति ] स्वयं स्वद्रव्यमें लीन होता है, [सः ] वह पुरुष [नियतम् ] नियमसे [सर्व-अपराध-च्युतः ] सर्व अपराधोंसे रहित होता हुआ, [बन्ध-ध्वंसम् उपेत्य नित्यम् उदितः ] बन्धके नाशको प्राप्त होकर नित्य-उदित (सदा प्रक ाशमान) होता हुआ, [स्व-ज्योतिः-अच्छ-उच्छलत्-चैतन्य-अमृत-पूर- पूर्ण-महिमा ] अपनी ज्योतिसे (आत्मस्वरूपके प्रक ाशसे) निर्मलतया उछलता हुआ जो चैतन्यरूप अमृतका प्रवाह उसके द्वारा जिसक ी पूर्ण महिमा है ऐसा [शुद्धः भवन् ] शुद्ध होता हुआ, [मुच्यते ] क र्मोंसे मुक्त होता है ।

भावार्थ : — जो पुरुष, पहले समस्त परद्रव्यका त्याग करके निज द्रव्यमें (आत्मस्वरूपमें) लीन होता है, वह पुरुष समस्त रागादिक अपराधोंसे रहित होकर आगामी बन्धका नाश करता है और नित्य उदयस्वरूप केवलज्ञानको प्राप्त करके, शुद्ध होकर समस्त कर्मोंका नाश करके, मोक्षको प्राप्त करता है । यह, मोक्ष होनेका अनुक्रम है ।१९१।

(मन्दाक्रान्ता)
बन्धच्छेदात्कलयदतुलं मोक्षमक्षय्यमेत-
न्नित्योद्योतस्फु टितसहजावस्थमेकान्तशुद्धम् ।
एकाकारस्वरसभरतोऽत्यन्तगम्भीरधीरं
पूर्णं ज्ञानं ज्वलितमचले स्वस्य लीनं महिम्नि ।।१९२।।

श्लोकार्थ : — [बन्धच्छेदात् अतुलम् अक्षय्यम् मोक्षम् कलयत् ] कर्मबन्धके छेदनेसे अतुल अक्षय (अविनाशी) मोक्षका अनुभव करता हुआ, [नित्य-उद्योत-स्फु टित-सहज- अवस्थम् ] नित्य उद्योतवाली (जिसका प्रक ाश नित्य है ऐसी) सहज अवस्था जिसकी खिल उठी है ऐसा, [एकान्त-शुद्धम् ] एक ान्त शुद्ध ( – क र्ममलके न रहनेसे अत्यन्त शुद्ध), और [एकाकार-स्व-रस-भरतः अत्यन्त-गम्भीर-धीरम् ] एक ाक ार (एक ज्ञानमात्र आक ारमें परिणमित) निजरसकी अतिशयतासे जो अत्यन्त गम्भीर और धीर है ऐसा, [एतत् पूर्णं ज्ञानम् ] यह पूर्ण ज्ञान [ज्वलितम् ] प्रकाशित हो उठा है (सर्वथा शुद्ध आत्मद्रव्य जाज्वल्यमान प्रगट हुआ है); और [स्वस्य अचले महिम्नि लीनम् ] अपनी अचल महिमामें लीन हुआ है ।

भावार्थ : — कर्मका नाश करके मोक्षका अनुभव करता हुआ, अपनी स्वाभाविक अवस्थारूप, अत्यन्त शुद्ध, समस्त ज्ञेयाकारोंको गौण करता हुआ, अत्यन्त गम्भीर (जिसका पार नहीं है ऐसा) और धीर (आकुलता रहित) — ऐसा पूर्ण ज्ञान प्रगट देदीप्यमान होता हुआ, अपनी महिमामें लीन हो गया ।१९२।

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