क्या तन मांजना रे… इक दिन मिट्टी में मिल जाना।
मिट्टी ओढन, मिट्टी बिछावन, मिट्टी का सिरहाना।।टेक।।
इस तन को तू रोज सजावे, खूब खिलावे खूब पिलावे।
निश-दिन इसकी सेवा करके, सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहिनावे।
अन्त समय ये साथ जायेगा, इस भ्रम में न आना।।१।।
काल अनंत गये अब तक बस, इससे प्रीति की है।
लेकिन इसमें महक रहे “ज्ञायक’ की शरण न ली है।
ये नहीं मुझमें मैं नहीं इसमें, भेद विज्ञान जगाना।।२।।
इसी देह को छोड़ प्रभु ने, शाश्वत् सुख है पाया।
अपने में अपनापन करके, निज वैभव प्रगटाया।
नहीं तोड़ना इस तन को बस, इससे राग हटाना।।३।।
अब तो स्वानुभूति उर लाओ, ज्ञाता दृष्टा खुद बन जाओ।
भेद ज्ञान से सिद्ध हुये हैं, जीव अनन्तानन्त हुये हैं।
भेद ज्ञान बिन कभी न होगा, मिथ्या भ्रम क्षय कारा।।४।।
Singer- @Preetijain