क्षमापना | kshamapana

क्षमापना

मैं लौटकर निगोद कभी जाऊँगा नहीं।
सम्यक्त्व धन जो पाया है गंवाऊँगा नहीं।
मेहनत से मैंने भेदज्ञान पा ही लिया है।
मिथ्यात्व मोहभाव कभी लाऊँगा नहीं !!
स्वर्गों के सुख का मार्ग तो पाया अनंत वार।
स्वर्गों की क्षणिक साता में लुभाऊँगा नहीं ॥
संसार मार्ग छोड़ मोक्षमार्ग पाया है।
निज मोक्षमार्ग तज के कहीं जाऊँगा नहीं ॥
गाए हैं मैंने गीत सदा ही विभाव के।
अब से विभाव गीत कभी गाऊँगा नहीं।
मंगलमय भगवान वीर प्रभु मंगलमय गौतम गणधर । मंगलमय श्री कुन्दकुन्द ऋषि मंगल जैनधर्म सुखकर।
सर्व मंगलों में मंगल है श्रेष्ठ सर्व कल्याणमयी ।
श्री जिनधर्म प्रधान जगत में जिन शासन हो सर्व जयी ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्

रचयिता:- कविवर पं. राजमल जी पवैया