यह क्षमा पर्व का दिवस एक
संदेश महा लेकर आया
जो हृदय युगों से टूट चूके
यह उन्हें शक्ति देने आया
बिखरी मणियां अनमोल अरे!
अनमोल अरे! बिखरे मोती ऐ!
बिखर-बिखर हंसने वालों
जगती तुम पर रोती होगी
जो तार वीण के टूट चुके
वे तार मिलाने ही होंगे
स्वर में स्वर भरकर विगत
गीत जागृति के गाने ही होंगे
इस जग में बिखर-बिखर कर भी
क्या सत्ता रह सकती होगी
वर्षा की बिखरी बूंदे क्या
सरिता सागर भरती होगी
यह क्षमा प्रेम का अग्रदूत
मल-मल कर कालिख धोता है
भर-भर देता अमृत प्याली
यह बीज मुक्ति का बोता है
लानत है ऐसे जीवन पर
मद निर्झर झर-झर झरता हो
चाहे भाई झोली फैला
दर-दर की ठोकर सहता हो
यह भावों का संसार यहाँ
वचनों का कोई तोल नहीं
रत्नों की ढेरी में होगा क्या
काँच खण्ड का मोल कहीं?
हम कीट वासना के क्या
इस दिन का सब मोल चुका देगें
‘बस क्षमा कीजिए’ कहकर क्या
जग का वैषम्य मिटा लेगें।
यह पर्व सिखाता है हमको
जग का जग को देते जाओ
जीवन की नौका हल्की कर
भव-सागर से खे ते जाओ
तब निखर उठेगा यह मानस
यह क्षमा करेगा कंचन-सा
छा जावेगा यह जीवन में
शिशु पर माता के अंचल-सा
फिर एक वर्ष के बाद अरे
क्यों आवे ऐसा पर्व कहो
हे महाशान्ति के महा पर्व ।
जीवन में हरदम साथ रहो
तब एक-एक क्षण जीवन का
बस पर्वराज बन जावेगा
यह जीवन है, यह पर्वराज
यह भेद नहीं रह पावेगा
फिर अपने और पराये की
नहिं जीवन में दुविधा होगी
फिर कौन क्षमा का पात्र कहो
जब क्षमामयी वसुधा होगी
Artist: श्री बाबू जुगलकिशोर जैन ‘युगल’ जी
Source: Chaitanya Vatika