बाल भावना। १८.क्षमा भाव सुखकारी । Kshama Bhav Sukhkari

१८. क्षमा

क्षमा भाव सुखकारी, निज स्वभाव अविकारी ।
वस्तु स्वरूप विचार, नहीं अनिष्ट चितारो ।।१।।

हो परिणमन स्वतंत्र, क्यों होकर परतंत्र ?
क्रोध अग्नि में जलते, नहीं स्वरूप समझते ।।२।।

एक कार्य में होते, अनेक कारण भाई ।
तत्व दृष्टि से देखो, दोषदृष्टि दु:खदाई ।।३।।

कर्मों के हैं प्रेरे, जग में जीव घनेरे ।
नहीं क्षोभ तुम करना, दया भाव उर धरना ।।४।।

यदि नहीं माने तो भी, मध्यस्थ ही रहना ।
उपसर्ग और परीषह, साम्यभाव से सहना ॥५॥

भिन्न ज्ञेय हैं सब ही, तुम ज्ञाता भगवान ।
रहो सहज ही ज्ञाता, बन जाओ भगवान ॥६॥

रचयिता-: बा.ब्र. श्री रवींद्र जी 'आत्मन्

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