कोरी चर्चा (शुद्धभाव की कोरी) | Kori charcha

शुद्धभाव की कोरी चर्चा…

शुद्धभाव की कोरी चर्चा, लीन अशुभ के भावों में।
शुभ भावों में धर्म मानता, आता नहीं स्वभावों में ॥टेक॥

व्रत-पूजन-अर्चन सब छोड़ा, स्वाध्याय भी छोड़ दिया।
जप-तप-त्याग-तपस्या-सामायिक से नाता तोड़ लिया ॥
भक्ष्य-अभक्ष्य नहीं पहिचाना फंस अनीति के दावों में ॥ १

पुण्य भाव को धर्म मानता राग-भाव का कर चिन्तन।
निजस्वरूप का लक्ष्य नहीं है, क्रियाकाण्ड में लय तन-मन
निज मन्दिर को छोड़ बसा है, जाकर पर के गाँवों में ॥२॥
निश्चयाभासी नहीं बनो तुम और न व्यवहाराभासी ।
निज स्वभाव का अवलम्बन लो, बनो नहीं उभयाभासी ॥
शाश्वत सुख से पूर्ण किन्तु रहता क्यों सदा अभावों में ॥३॥

सप्त तत्त्व का निर्णय करके निज स्वरूप को पहचानो ।
भाव अशुद्ध जगत निर्माता शुद्धभाव हितकर मानों ॥
समयसार का सार यही है, आओ निज की छांवों में ॥४॥

निश्चय बिन व्यवहार नहीं है, है केवल व्यवहाराभास ।
शुभभावों में मग्न न रहना, शुद्धभाव के रहना पास ॥
एक-एक पग रखो, सम्हल कर बंधन पड़े न पाँवों में ॥५॥

  • कविवर राजमल पवैया, भोपाल