कोई इत आओ जी, वीतराग ध्याओ जी,
जिनगुण की आरती, संजोय लाओ जी ।।टेक।।
दया का हो दीपक, क्षमा की हो जोत।
तेल सत्य संयम में, ज्ञान का उद्योत ।।
मोह तम नशाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ।।1।।
संयम की आरती में, समकित सुगंध।
दर्श ज्ञान चारित्र की, हृदय में उमंग।।
भेदज्ञान पाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ।।2।।
नर तन को पायकर, भूलियो मती।
बन जा दिगम्बर, महाव्रत यति ।।
भावना ये भाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ।।3।।
जिनगुण की आरती में, ध्यान की कला।
भव भव के लागे सब, कर्म लो जला।।
भव भ्रमण मिटाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ।।4।।