(सवैय्या 31)
जाकै रग द्वैष काम क्रोध लोभ क्षोभ नसे,
मिटि गई मोह मान माया की तरङ्ग है।
जाकै इष्टानिष्ट सुख-दुख लाभालाभ सम,
जीवन-मरण पुष्पमाला वा भुजङ्ग है।।
निशि-दिन रहें निज ब्रह्म में मगन कछु,
और न लगन एक मोक्ष की उमङ्ग है।
ऐसे सद्बुद्धियों को जगत भी मुक्ति सम,
जो है मन चङ्ग तो कठौती माहिं गङ्ग है।।