कैसा सुंदर है ये जैन शासन महा | Kaisa Sundar Hai Ye Jain Shasan Maha

कैसा सुंदर है ये जैन शासन महा
जिसकी चर्चा ही सुंदर है आनंदमयी
कुछ भी करना न धरना न लेना देना
ज्ञाता रहना सिखाता यही सुखमयी ।। टेक ।।

भाग्य से मिल गये वीतरागी प्रभु
मिल गयी देशना दिव्य अतिशयमयी
कोई शिकवा रहा न शिकायत रही ।
सारा संसार दीखे सहज ज्ञेय ही ।। टेक।।

अब मुझे दिख रहा है अनादि निधन ।
मेरा शुद्धात्मा पूर्ण महिमामयी ।
भेद विज्ञान का क्या कमाल कहूं ।
सिद्ध होते इसी एक विधि से सही ।। टेक।।

मोह को क्षीण करना ही उद्देश्य है ।
मोह ने ही नचाया चतुर्गति मुझे ।
मोह अज्ञान आधार से पल रहा ।
ज्ञान वैराग्य बल से जीतूंगा उसे टेक।।

रचनाकार:- पं० राजेन्द्र कुमार जी, जबलपुर

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