कभी न करना | Kabhi naa karna

कभी न रो-रो आँख सुजाना।
कभी न मन में क्रोध बढ़ाना ।।
कभी न दिल से दया भुलाना।
कभी न सच्ची बात छिपाना।।
कभी न बातों में चिढ़ जाना।
कभी न दुष्टों से भय खाना ।।
कभी न भोजन करके नहाना।
कभी न बासा भोजन खाना ।।
कभी न अति खा पेट फुलाना।
कभी न खाते ही सो जाना।।
कभी न पढ़ने से घबराना।
कभी न तन में आलस करना।।
कभी न मन में लालच लाना।
कभी न इतनी बात भुलाना।।

Artist: बाल ब्र. श्री सुमत प्रकाश जी
Source: बाल काव्य तरंगिणी