कभी भूल नहीं जाना, जिनधर्म को तुम ध्याना,
ऐसा यह धर्म सुहाना है, इसे कभी न बिसराना॥ टेक॥
नरजन्म रतन को पाकर के, अब समय नहीं गवाना हैं,
कोई पूर्व पुण्य होगा तेरा, नरतन को पाया है।
कभी भूल नहीं जाना…॥१॥
ये विषयभोग दुःखदाई है, त्यागो जिनवाणी कहती है।
कर पंचेन्द्रिय को वश में तू, फिर छोड़ मोह आना।
कभी भूल नहीं जाना… ॥२॥
ये काय यही रह जाएगी, इससे तुम प्रीति नहीं करना।
है चेतन इसमें बसा हुआ, जाने किस क्षण जाना।
कभी भूल नहीं जाना… ॥३॥