कबधौं मिलै मोहि श्रीगुरु | Kabdho mile mohe shriguru

कबधौं मिलै मोहि श्रीगुरु मुनिवर, करि हैं भवोदधि पारा हो ।।टेक।।

भोग उदास जोग जिन लीनों, छाँडि परिग्रहभारा हो ।
इन्द्रिय दमन वमन मद कीनो, विषय कषाय निवारा हो ।।१ ।।कबधौं…।।

कंचन काँच बराबर जिनके, निंदक बंदक सारा हो ।
दुर्धर तप तपि सम्यक निज घर, मनवचतनकर धारा हो ।।२ ।।कबधौं…।।

ग्रीषम गिरि हिम सरिता तीरै, पावस तरुतल ठारा हो ।
करुणाभीन चीन त्रसथावर, ईर्यापंथ समारा हो ।।३ ।।कबधौं…।।

मार मार व्रत धार शील दृढ़, मोह महामल टारा हो ।
मास छमास उपास वास वन, प्रासुक करत अहारा हो ।।४ ।।कबधौं…।।

आरत रौद्र लेश नहिं जिनके, धर्म शुकल चित धारा हो ।
ध्यानारूढ़ गूढ़ निज आतम, शुध उपयोग विचारा हो ।।५ ।।कबधौं…।।

आप तरहिं औरन को तारहिं, भवजलसिंधु अपारा हो ।
`दौलत’ ऐसे जैन-जतिन को, नितप्रति धोक हमारा हो ।।६ ।।कबधौं…।।

Artist - पंडित श्री दौलतराम जी

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वे मुनिवर जिन्होंने भोगों से विरक्त होकर संन्यास ले लिया है और सारे परिग्रह के भार को छोड़ दिया है,इंद्रियों को वश में कर अहंकार का त्याग कर दिया है, जिन्होंने संयम का पालनकर, मान कषाय का नाशकर, इंद्रिय विषयों व कषायों को दूर कर दिया है, नष्ट कर दिया है, ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे?

Those who have renounced the bhog and have given up the burden of all grace, subdued the senses and renounced the ego, who, by exercising restraint, destroying pride from human mind, removing sensory subjects and problems, and destroying them, when will I find such monks?

कंचन और काँच, निंदक और प्रशंसक, सब ही जिनके लिए एक-समान हैं। कठोर साधना-तपकर मन-वचन- काय सहित जो शुद्ध रूप में अपनी आत्मा में लीन हैं, साधनारत हैं, ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे?

For whom kanchan and kancha, cynic and fan, all are same,the one who meditates hard, when will I find such a sage ,who is absorbed in his soul in a pure form, including mind-words and actions?

गर्मी में पहाड़ की चोटी पर, सर्दी में नदी के किनारे और वर्षा में पेड़ के नीचे बैठ कर जो ध्यान करते हैं; जो करुणा से, दया से भीगे हुए हैं त्रस और स्थावर जीवों को देखकर-संभल कर चलते हैं और इर्या समिति का पालन करते हैं, ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे?

Those who meditate on the top of a mountain in summer, on the banks of a river in winter and under a tree in rain; those who are drenched in compassion, seeing the tras(2,3,4,5 sensed beings) and the sthavar(single sensed beings), they walk cautiously and follow the irya samiti, when will I find such monks?

जो दृढ़ता से शील व्रत को पालते हैं; काम को जिन्होंने मार दिया है, जीत लिया है और मोहरूपी मैल को दूर कर दिया है, जो वन में रहकर एक मास के, छह मास के उपवास करते हैं और जब भी आहार ग्रहण करते हैं तब केवल प्रासुक अर्थात् शुद्ध आहार ही ग्रहण करते हैं - ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे?

Those who strongly observe Sheel Vrat; those who have killed lust and desire, have conquered and removed the scum of fascination , who fast in the forest for one month,six months, and whenever they eat a diet, only consume the foster diet - When will I get such a monks?

जिनके जरा-सा भी आर्त और रौद्र ध्यान नहीं है, जो धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान में लीन रहते हैं और अपनी आत्मा के गहरे ध्यान में डूबे रहकर, अपना उपयोग शुद्ध रखते हैं, अपने शुद्ध स्वरूप का विचार करते हैं, ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे?

Those who do not have even the slightest aartra and raudra meditation, who are absorbed in Dharma and Shukla meditation and remain immersed in the deep meditation of their soul, keep their use pure, consider their pure form, when will I meet such a saint?

जो आप स्वयं इस अपार अगम अथाह भवसागर से तैरकर परिश्रमकर, तपस्या कर स्वयं पार होते हैं व औरों को भी इसी प्रकार पार कराते हैं। दौलतराम कहते हैं कि ऐसे जैन साधुओं को, गुरुओं को हमारा नित्यप्रति - सदैव नमन है।

Which you yourself swim through this immense aghast bhavasagar and work hard, do penance and cross others in the same way. Pt. Sri Daulatram ji says that we are always bowed down to such Jain monks and gurus.

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