जिनवाणी इक्कीसी | Jinwani Ikkisi

"जिनवाणी इक्कीसी"

[ १ ]

जिनवाणी की विराधना से मानव धिक्कार पाता है ।
जिनवाणी की आराधना से मन का विकार जाता है ।।
जिनेन्द्र का मार्ग कठोरतम होते हुये भी –
जिनमार्ग पर चलने से जीवन में निखार आता है।।

[ २ ]

जिनवाणी के बिना ज्ञान नहीं होता ।
उदारता के बिना दान नहीं होता ।।
प्राप्त के प्राप्ति की इच्छा रखने वालों–
भगवती आराधना बिना कल्याण नहीं होता ‌‌।।

[ ३ ]

जिनवाणी वही सुन सकता है जो संसार से भयभीत है ।
जिन वचन वहीं पचा सकता है जो धीर व गंभीर है।।
बाहर के दुश्मनों को पराजित करने वालों–
आत्म शत्रु को वही जीत सकता है जो सच्चा वीर है ।।

[ ४ ]

जिनवाणी के बिना साधना नहीं होती ।
निर्मलता के बिना उपासना नहीं होती ।।
इष्ट सिद्धि के लिये माला फेरने वालों–
अध्यात्म के बिना आराधना नहीं होती ।।

[ ५ ]

जिनवाणी का अस्तित्व होता नहीं जहाँ मुमुक्ष नहीं है।
भौंरे वहां जाते नहीं जिस फूल में सुगन्ध नहीं है ।।
निभा सकते हैं व्यवहार ऊपर का सब–
पर जिनमर्म वहां खिलता नहीं जहां आत्मीय संबंध नहीं है।।

[ ६ ]

जिनवाणी के बिना अंतर में प्रकाश नहीं है।
बिना गुरु के विद्या का विकास नहीं है।।
पर आश्चर्य की बात तो यह है कि –
जैनियों का जिनवाणी पर विश्वास नहीं है ।।

[ ७ ]

जिनवाणी के बिना, आल्हाद नहीं होता।
नींव के बिना, प्रासाद नहीं होता ।।
धन के संग्रह में, लीन रहने वालों–
दर्शन मूल के बिना निर्वाण नहीं होता ।।

[ ८ ]

जिनवाणी की विराधना से कोई गुणवान नहीं होता।
जिन शास्त्रों को रौंदने से कोई पहलवान नहीं होता।।
सत्गुरुओं को दोष न लगावो थोड़ा गहराई से सोचो–
अनुचित बातें करने से कोई महान नहीं होता ।।

[ ९ ]

जिनवाणी के बिना सच्चा ज्ञान नहीं होता।
केवल अक्षर ज्ञान से कोई विद्वान नहीं होता ।।
जिनवाणी की विराधना करने वालों–
जिनवाणी के बिना आत्मकल्याण नहीं होता ।।

[ १० ]

जिनवाणी जपने से मन का विकार जाता है।
जिनवाणी में खपने से सुख विस्तार पाता है ।।
अन्तर मन से सोचो संत की भांति–
जिनवाणी में रमने से भव का अंत हो जाता है ।।

[ ११ ]

वह समाज किस काम का जिसमें जिनवाणी का सन्मान न हो।
वह मानव किस कामके जिनके सुन्दर विचार न हो ।‌।
धनोपार्जन में जीवन खपाने वालों–
वह धन किस काम का जिससे जिनवाणी प्रचार न हो।।

[ १२ ]

समाज में अनुशासन होना चाहिए ।
शासितों में धैर्य होना चाहिए ।।
अगर समाज का उत्कर्ष करना है तो–
घर घर जिनवाणी का स्वाध्याय होना चाहिए।।

[ १३ ]

जिनवाणी के पथ पर संसार में चलता है कोई-कोई ।
मोक्ष मंजिल पाने के लिए बढ़ता है कोई-कोई ।।
सब प्रवीण हैं अध्यात्म की बातें करने में–
मगर संत की भांति संसार का अंत करता है कोई-कोई ।।

[ १४ ]

जिनवाणी के शिखर पर चढ़ता है कोई-कोई ।
विनय एवं नम्रता से पढ़ता है कोई-कोई।।
सोया पड़ा है सारा संसार मोह नींद में–
भव अंत करने के लिये जागता है कोई-कोई ।।

[ १५ ]

जिनवाणी की गूढ़ दृष्टि पहचानना आसान नहीं है ।
गुरु बिना प्रवीण भी ज्ञान पाता नहीं है ।।
किसी का उपकार करना हमारा कत्तव्य है, पर–
गुरू का उपकार मानना कोई एहसान नहीं है ।।

[ १६ ]

"वह शास्त्र ही क्या जिसमें वीतरागता नहीं है ।
वह औषध ही क्या जिसमें रोग का उपचार नहीं है ।।
धर्म का ढोंग करने वाले बहुत मिलेंगे पर–
वह धर्मात्मा क्या जिसे जिनवाणी से प्यार नहीं है ।।

[ १७ ]

वीतरागता के बिना धर्म भी निस्सार होता है ।
गति के बिना वाहन भी बेकार होता है ।।
नये नये आविष्कार की होड़ में खपने वालों–
धर्म के बिना मानव भी धरती पर भार होता है।।

[ १८ ]

यदि शास्त्र नष्ट होने लगे तो समाज का क्या होगा ।
यदि अंदर की शरम निकल गई तो ऊपर की लाज से क्या होगा
धर्म प्रचार के स्वप्न को साकार करने वालो–
धर्म रक्षक ही भक्षक बन गये तो धर्म का क्या होगा ।।

[ १९ ]

समुद्र का महत्व सलिल से नहीं गंभीरता से है।
साधु का महत्व नग्नता से नहीं साधना से है ।।
जिनवाणी चिन्तन से ऐसा अनुभव होता है कि–
ज्ञानी का महत्व क्षयोपशम से नहीं अनुभूति से है ।।

[ २० ]

जिनवाणी के संयोग से अज्ञ भी ज्ञानी बन जाता है।
संतों के सत्संग से पापी बदल जाता है ।।
घबराना मत मैं तुम्हें सच कहता हूं–
चोर जैसा मानव भी भगवान बन जाता है ।।

[ २१ ]

साध्य उसी का सधेगा जो जिनवाणी में रमता है।
समयसार उसी को मिलेगा जिसमें पूर्ण क्षमता है ।।
प्रशंसा को सुनकर खुश कौन नहीं होता, किन्तु–
निंदा को वही सुन सकेगा जिसके दिल में समता है ।।

रचयिता : श्री प्रमोद कुमार जैन, खंडवा

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