जिनवर के दर्शन को आयेंगे | Jinvar ke darshan ko ayenge

(तर्ज : छोटा सा मन्दिर…)

जिनवर के दर्शन को आयेंगे, भक्ति की गंगा बहायेंगे।
ज्ञानमयी जिन दर्शन करके, आतम दर्शन पायेंगे। टेक।।

निश्चल मुद्रा प्रभुवर की लखकर, चंचलता दूर भगायेंगे।।1।।
हाथ पै हाथ प्रभु जी के लखकर, कर्तृत्व बुद्धि नशायेंगे ।।2।।
अन्तर्दृष्टि प्रभुजी की लखकर, अन्तर्मुख हो जायेंगे ।।3।।
वीतरागता प्रभुवर की लखकर, रागादि भिन्न जनायेंगे।।4।।
सर्वज्ञता प्रभुवर की लखकर, ज्ञानमयी हो जायेंगे ।।5।।
जाननहार प्रभु ज्यों तुम हो, जाननहार रहायेंगे ।।6।।
विषय-कषाय परिग्रह तजकर, निर्ग्रन्थ दशा प्रगटायेंगे।।7।।
निश्चल हो निज ध्यान धरेंगे, प्रभु समान हो जायेगें ।।8।।

रचयिता:- ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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