जिनवाणी सुन लो रे भैया, जिनवाणी सुन लो रे ॥
अनन्त भव यूँ ही खोये, पर का बोझा ढोये।
तेरी कथा तुझको सुनावे-2 ॥ जिनवाणी सुन. ॥ (1)
पञ्चपरावर्तन दु:खड़े सुनाकर,
दुर्लभ नरभव का ज्ञान कराकर।
अब ना सुनी तो फिर कौन कहेगा-2॥ जिनवाणी सुन. ॥ (2)
सिद्ध स्वरूपी तू जग में है घूमे,
आनन्द सुखमय प्रभु खुद को हैं भूले।
जिनवाणी से अपना आतम पहचान ले-2॥ जिनवाणी सुन. ॥(3)
चिदान्द ध्रुव का दर्शन कराकर,
वीतरागी सुख का अमृत पिलाकर।
जाग रे क्यों मोह-नींद में सोये-सोये-2॥ जिनवाणी सुन. ॥(4)