जिनवाणी माता रत्नत्रय निधि दीजिये॥ टेक॥
मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चरण से, काल अनादि घूमे,
सम्यग्दर्शन भयौ न तातैं, दुःख पायो दिन दूने ॥१॥
है अभिलाषा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण दे माता।
हम पावैं निजस्वरूप आपनों, क्यों न बनैं गुण ज्ञाता ॥२॥
जीव अनन्तानन्त पठाये, स्वर्ग मोक्ष में तूने।
अब बारी है हम जीवन की, होवे कर्म विदूने ।।३।।
भव्य जीव है पुत्र तुम्हारे, चहुँगति दुःख से हारे ।
इनको जिनवर बना शीघ्र अब, दे दे गुण-गण सारे ॥४॥
औगुण तो अनेक होत हैं, बालक में ही माता।
पैं अब तुमसी माता पाई, क्यों न बनें गुण ज्ञाता ॥५॥
Artist - श्री जयकुमार जी