जिनवाणी को नमन करो, यह वाणी है भगवान की।
इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की।
वन्दे जिनवरम्, वन्दे गुरूवरम् … ॥टेक।।
स्याद्वाद की धारा बहती, अनेकान्त की माता है।
मद-मिथ्यात्व कषायें गलती, राग-द्वेष जल जाता है।
पढ़ने से है ज्ञान जागता, पालन से मुक्ति मिलती।
जड़ चेतन का ज्ञान हो इससे, कर्मों की शक्ति हिलती।
इस वाणी को नमन करो यह वाणी है भगवान की।
इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की ॥1॥
इसके पूत-सपूत अनेको कुन्दकुन्द जैसे ज्ञानी।
खुद भी तरे अनेकों तारे, मुक्ति कला के वरदानी ॥
महावीर की वाणी है, गुरू गौतम ने इसको धारी।
सत्य धर्म का पाठ पढ़ाती, भक्तों को है हितकारी।
सब मिल करके नमन करो यह वाणी केवलज्ञान की।
इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की।।2।।
शुद्धातम है सिद्ध स्वरूपी, जिनवाणी बतलाती है।
शुब्द ज्ञानमय चिदानंदमय, बार-बार समझाती है।
द्रव्य भाव नोकर्म हैं न्यारे, प्रगट प्रत्यक्ष दिखाती है।
स्वसंवेदन से अनुभव में, भी प्रमाणता आती है।
मोह नींद सेआई जगाने भव्य-जनों के काम की।
इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की ।।3।।
इस वाणी ने सुप्त हृदय के तार अनेकों के झनकाये।
इस वाणी से अंजन जैसे जीव निरंजन शिवपुर धाये।।
जिनवाणी है जिनकी वाणी जिन होने की कला सिस्थाये।
उसी भव्य के मन भाती है जिसकी काललब्धि आ जाये।
यह गंगा करती मन चंगा, सुधा सिन्धु कल्याण की।
इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की ।।4।।