जिनके हिरदै प्रभु नाम नहीं, तिन नर अवतार लिया न लिया।
दान बिना घर-वास वास, कै लोभ मलीन धिया न धिया ।।टेक।।
मदिरा-पान कियो घट अंतर, जल मल-सोधि पिया न पिया।
आना के मांस भखे तैं, करुणा भाव हिया न हिया ।।1।।
रूपवान गुन-खान वानि शुभ, शील विहीन तिया न तिया।
कीरतवन्त मृतक जीवत हैं, अपजसवंत जिया न जिया ।।2।।
धाम माँहि कछु दाम न आए, बहू व्योपार किया न किया।
‘द्यानत’ एक विवेक किये बिन, दान अनेक दिया न दिया ।।3।।
Artist: Pt.Dyanat Ray Ji