जिन धरम जिन धरम, हमने समझा मरम । Jindharam jindharam humne samjha maram

जिन धरम जिन धरम, हमने समझा मरम,
इसकी रक्षा में प्राण भी तज देंगे हम।
नाम से हम रहें या भुला दे सभी,
नाम इसका अमर कर जायेंगे हम।

ऋषभादि प्रभु से चली ये धरा,
मूल वस्तु स्वरूप कभी न मरा।
हो गया पर विलुप्त जो बोध कभी,
तीर्थंकर प्रभु का उदय अवतरा।
पर विरह हो चला आज उनका भले,
तीर्थ उनका कभी न भुलाएंगे हम।
जिन धरम जिन धरम…

ज्ञान अल्प हुआ घट गई स्मृति,
श्रुत की धारा बही पर सिमटती रही।
लिपिबद्ध करो अथवा मिट जाएगा,
धरसेनाचार्य को करुणा रही।
तब से प्रारम्भ हुआ लिपिबद्ध जिनागम,
शीश पर ही सदा इसको धारेंगे हम।
जिन धरम जिन धरम…

लिख रहे थे मुनि ताड़पत्रों को ले,
न कलम न सियाहीं न चौकी धरे।
चुभते काँटे कलम टपटपाता लहूँ,
ऐसी करुणा अलौकिक हिया में भरे।
दे गए वे हमे जो विरासत सभी,
मोल उनका कभी न आंक पायेंगे हम।
जिन धरम जिन धरम…

परिणति झूमती ज्ञान के स्त्रोत में,
क्यों रहे वे कहीं ज्ञेय के ठौर में।
भव्य जीवों प्रति राग उमड़ा करे,
जो महकता है अंदर वही उल्लसे।
ऐसे मुनिवर महा उपकारी मिले,
मार्ग उनका कभी न लजायेंगे हम
जिन धरम जिन धरम…

बौद्ध सेना ने जब था किया आक्रमण,
वीर निकलंक ने तब गवाया न क्षण।
ध्वज दिया वीर अकलंक को धर्म का,
सर कटाते हुए न थी मुख पर शिकन।
उनके प्राणों की कीमत पे ध्वज ये मिला,
सर कटे पर इसे न झुकायेंगे हम।
जिन धरम जिन धरम…

टोडरमल से थे वीर जिनने ध्वजा,
मोक्षमार्ग प्रकाशक से दी थी सजा।
कुछ कुमार्गी जनो को न रास रही,
कुचलवाया था हाथी से न्याय लजा।
ध्यान धारे हुए प्राण अर्पित किये,
जिस ध्वजा को उसे न गिरायेंगे हम।
जिन धरम जिन धरम…

बाद में वीर कितने हुए अनगिनत,
सर कटाये भले पर न बदला था मत।
शास्त्र और जिनालय खतरे में पा,
छोड़ी सम्पत्तियां शास्त्र प्रतिमा धरत।
भाग कर छिपा कर प्राण देकर मगर,
दे दिया है सुरक्षित ये अवसर परम।
जिन धरम जिन धरम…

आज से प्रण करो प्राण जाएं भले,
पर न विश्वास मेरा कभी भी चले।
एक जिन धर्म है सौख्य की वो कला,
मोह साम्राज्य जिसके आगे ढले।
कितने बलिदान पर है मिली ये ध्वजा,
स्वास के अंत तक फहराएंगे हम।
जिन धरम जिन धरम…

Artist- आदरणीय बाल बह्मचारी पण्डित सुनील जी

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