जिया तैं आतमहित नहिं कीना | Jeeya tae Aatamhit nahi keena

जिया तैं आतमहित नहिं कीना |
रामा रामा धन धन कीना, नरभव फल नहिं लीना || टेक ||

जप तप करकें लोक रिझाये, प्रभुता को रस भीना |
अन्तर्गत परनाम न सोधे, एकौ गरज सरी ना || १ ||

बैठि सभा में बहु उपदेशे, आप भये परवीना |
ममता डोरी तोरी नाहीं, उत्तम तैं भये हीना || २ ||

‘घानत’ मन वच काय लायके, निज अनुभव चित्त दीना |
अनुभव धारा ध्यान विचारा, मंदर कलश नवीना || ३ ||

Artist- पं. घानतराय जी