जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


46. धार्मिक कार्यक्रम से शिक्षायें लें

  1. अपने को ध्रुव ज्ञानानंदमय आत्मा ही समझें।

  2. भयभीत कभी न हों, सावधान सदैव रहें।

  3. अपने समान ही सर्व जीवों को समझें और सबके प्रति वात्सल्यपूर्ण व्यवहार करें।

  4. मोह, क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, काम, हास्यादि दुर्भावों के वश होकर दुर्वचन न बोलें। दुष्चेष्टाऐं न करें।

  5. प्रशंसा की चाह न रखते हुए भी सदैव प्रशंसनीय कार्य करें। निंदा की परवाह न करते हुए भी निंदनीय कार्य कभी न करें।

  6. सम्यक्त्व को कभी मलिन न होने दें।

  7. देव-शास्त्र-गुरु के प्रति निष्काम भक्ति एवं हेय-उपादेय के सांगोपांग विचार पूर्वक, अंतरंग एवं बाह्यप्रवृत्ति को निर्मल रखें।

  8. अर्जित विद्या का दैनिक जीवन एवं परोपकार में सदुपयोग करें। मूढ़ताओं एवं कषायों में न उलझें।

  9. जीवनपर्यन्त श्रेष्ठ साहित्य एवं धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययनशील रहें। नवीन ज्ञान के लिए जिज्ञासु एवं प्रयत्नशील रहें।

  10. समय-समय पर होने वाली गोष्ठियों में सम्मिलित होवें और स्वयं भी ज्ञानवर्द्धक गोष्ठियों का आयोजन करें।

  11. भ्रष्टाचार में सहयोगी भी न बनें।

  12. अन्याय से धन न कमायें, आय का निश्चित अंश दान में अवश्य खर्च करें।

  13. शील की मर्यादाओं के पालन में सतर्क रहें।

  14. कर्तव्य का पालन ईमानदारी एवं निष्ठापूर्वक करें।

  15. निंद्य कार्यों - नशा, तामसिक भोजन, मांसाहारादि से सर्वथा दूर रहें।

  16. गुरुजनों का सम्मान रखें एवं योग्य सेवा व्यवहार करें।

  17. समाज एवं देश के हित में ही सोचें।

  18. किसी प्रसंग में उत्तेजित न हों। उत्तेजना में निर्णय तो कदापि न लें।

  19. कठोरता एवं क्रूरता पूर्वक दण्ड भी न दें।

  20. भौतिकता की चकाचौंध में फँसकर धर्म, सादगी एवं संतोष को कभी न छोड़ें।

  21. अपने दोष को सहजता से स्वीकार करें। कभी कुतर्कों के द्वारा अपने दोष छिपाने का प्रयत्न न करें।

  22. प्रत्येक कार्य विवेक, विनय, यत्नाचार एवं उत्साहपूर्वक करें । प्रमाद, अहंकार, कुतर्क सर्वत्र त्याज्य हैं।

(table of contents)

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