जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


45. कार्यक्रम उद्घाटन निर्देश

  1. ज्ञानवृद्धि, परिणाम विशुद्धि, परस्पर वात्सल्य ही कार्यक्रम का प्रयोजन रखें।

  2. निस्पृहता, अनुशासन एवं उत्साहपूर्वक कार्यक्रम संपन्न करें।

  3. किसी प्रसंग में उत्तेजित, खिन्न और हतोत्साहित न हों।

  4. अपने कार्य को निष्ठापूर्वक करते हुए, दूसरों के कार्य में भी सहयोग करें।

  5. प्रतिकूल प्रसंगों में दूसरों पर दोषारोपण न करें। प्रतिष्ठा बिन्दु बनाकर कार्यक्रम में विघ्न न करें।

  6. विशेष प्रतिकूलता आने पर भी माध्यस्थ ही रहें, परन्तु अंतरंग प्रीति पूर्वक परोक्षरूप से ऐसा सहयोग करें कि किसीप्रकार आयोजक को ठेस न पहुँचे एवं सामाजिक वातावरण विकृत न हो पावे।

  7. किसी प्रसंग में स्वयं ही श्रेय, प्रशंसा एवं पुरस्कार लेने के लिए लालायित एवं अग्रसर न हों। दूसरों को अवसर दें।

  8. नये सहयोगीजनों को उत्साहित करते हुए तैयार करें। उनका यथायोग्य सहयोग करें। दोषों का उपगूहन करें।

  9. किसी की कमियों को कदापि न उछालें।

  10. समस्त जानकारी प्रमाणिक रूप से संग्रह कर संक्षिप्त एवं स्पष्ट संचालन विनयपूर्वक करें। संचालन सफलता का प्रमुख कारण समझें।

  11. अतिरिक्त प्रदर्शन किसी प्रसंग में न करें।

  12. अनैतिक व्यक्तियों को सामाजिक सम्मान न दें, परन्तु तिरस्कार कदापि न करें। उन्हें भी जुड़ने एवं सुधरने का अवसर प्रदान करें।

  13. त्यागियों एवं विद्वानों से, धनवानों एवं नेताओं का सम्मान न करवायें।

(table of contents)

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