जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


43. यात्रा, धर्मशाला, विश्राम स्थल निर्देश

  1. स्वच्छता का ध्यान रखें। सार्वजनिक सम्पत्ति को न चुराएँ, न खराब करें।

  2. सुविधाओं का सदुपयोग सावधानी पूर्वक ही करें। आगे आने वाले लोगों का भी ध्यान रखें। ऐसा न हो कि उन्हें ऐसा लगे कि कौन असभ्य इस स्थान को गंदा कर गया या वस्तु खराब कर गया।

  3. चाहे कहीं न थूकें । गंदगी, छिलके, कूड़ा चाहे कहीं न डालें।

  4. लैट्रिन, बाथरूम, वॉशवेसन में पानी अवश्य डालें।

  5. शुल्क एवं टिकिट चोरी न करें।

  6. असभ्यता पूर्ण बातचीत (गाली आदि, अनावश्यक बोलना, अकड़ना, उपहास करना, कुदृष्टि से देखना) न करें एवं दूसरों को असुविधाकारक धूम्रपानादि क्रियाएं न करें। ताश आदि न खेलें, पैर फैलाकर गलत ढंग से न बैठें, न खड़े हों, न लेटें, न चढ़ें, न उतरें आदि।

  7. अनावश्यक कर्जा कभी न लें एवं कर्जा लेकर न देने की नियत कदापि न बनायें।

  8. पुस्तकालय आदि से पुस्तक या कहीं से कोई वस्तु लाकर सदुपयोग के बाद नियत समय पर व्यवस्थित रूप से लौटाएँ।

  9. सरकारी टैक्स, यातायात, प्रवासादि सम्बन्धी नियमों का यथाशक्ति पालन करें। भ्रष्टाचार को छोड़कर शिष्टाचार अपनायें।

  10. स्थान छोड़ने से पहले ही अपना सामान देखें एवं सम्हालें। जिससे पीछे से शिकायत एवं शंका का अवकाश न रहे।

  11. स्थान ग्रहण करने से पूर्व वहाँ की समस्त सामग्री-कमरा, अलमारी आदि देख लें। यदि दूसरों की कोई वस्तु मिले तो अधिकृत स्थान पर जमा करायें।

  12. कमरों में लगे गुप्त कैमरों को भी जाँच लें एवं उनसे सावधान रहें।

  13. चाहे जहाँ, चाहे जैसे, चाहे कुछ न खायें, निंद्य वृत्ति न करें। अनुशासन का पालन करें। अपने कारण दूसरों को प्रतीक्षा न करना पड़े।

  14. अपने बिस्तर और बर्तन साथ रखें जिससे चाहे जैसे बिस्तर और बर्तनों से बचा जा सके।

  15. यात्रा में विद्वान, माइक, बड़ी टार्च साथ में ले जावें। भक्ति, प्रवचन, चर्चा कार्यक्रम व्यवस्थित रूप से होते जायें।

  16. यात्रा से पहले ही तीर्थों का परिचय, अध्ययन आदि कर लें।

  17. तीर्थयात्रा पवित्र भावना पूर्वक नियम लेकर करें । यात्रा के बीच समय का पूर्ण सदुपयोग करें।

(table of contents)

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