जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


36. नारी निर्देश

1. कन्या को देहरी दीपक कहा है, अत: उसके पालन पोषण एवं संस्कारों के प्रति उपेक्षित व्यवहार न करें।

2. दूषित सौन्दर्य प्रसाधन, दर्द निवारक, मासिक धर्म रोकने हेतु गोलियाँ, गर्भनिरोधक गोलियाँ, शीलविरुद्ध साहित्य या अन्य सामग्री घर पर न लायें । गर्भपात आदि न करायें।

3. सत्साहित्य, चित्रादि अवश्य रखें।

4. स्वास्थ्य घातक खाद्य सामग्री घर में न लायें। मासिक अशुद्धि के समय मर्यादाओं का सावधानी पूर्वक पालन करें।

5. व्यापार या सर्विस अति आवश्यक होने पर ही करें।

6. अपना समय, शक्ति एवं बुद्धि पारिवारिक एवं सामाजिक उत्थान में लगायें।

7. महिलाओं के विकास के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू कर्तव्य शिक्षा, सिलाई, कढ़ाई आदि के शिविर आयोजित करें। रचनात्मक कार्य करें।

8. सच्चरित्र नौकरों का सहयोग भले लें, परन्तु उनका अन्तरंग प्रवेश वर्जित रखें। उनका अति विश्वास न करें। उनके सामने अपनी व्यक्तिगत एवं आर्थिक स्थिति न कहें।

9. बच्चों को भी पूर्णत: उन्हीं के भरोसे न छोड़े, विशेषतः लड़कियों को।

10. बच्चों के भोजन, अध्ययन, खेल, संगति, शयन, बोलचाल आदि का सूक्ष्म निरीक्षण करती रहें। इन कार्यों के समय उपस्थित भी रहें।

11. आय-व्यय का हिसाब अपना तो रखें ही, बच्चों को भी आय-व्यय का हिसाब रखने की आदत डालें।

12. अपने जीवन से सभ्यता एवं नैतिकता की शिक्षा दें अर्थात् कहें कम, प्रवृत्ति से अधिक दिखावें । सभ्य भाषा बोलें, मर्यादा से बोलें, बैठे, खायें, पियें, सोयें, पहनें, । बड़ों की विनय एवं सेवा करें, जिससे बच्चे स्वयं सीखेंगे।

13. बच्चों को उचित ढंग से समझायें, अधिक डाँटें या मारे नहीं।

14. स्वच्छता एवं शुद्धता का ध्यान रखें, जिससे घर अनुशासित एवं स्वच्छ दिखे।

15. सामान्यतः प्रमादवश मल-मूत्र सोखने वाले वस्त्र, चड्डी (डायपर) आदि न स्वयं पहिने, न बच्चों को पहिनायें।

16. सर्वप्रकार की खाद्य सामग्री घर में यत्नाचार एवं विवेक पूर्वक शुद्ध स्वयं तैयार करें और करायें। ऐसे केन्द्र भी बनायें जहाँ दूसरों की आजीविका चले और शुद्ध सामग्री स्वयं तथा दूसरों को उपलब्ध हो सके। इसमें लोभ त्याग अनिवार्य है।

17. आधुनिक साधनों टी.वी., कम्प्यूटरादि का अति विवेक पूर्वक ही उपयोग करें।

18. शील निर्देशिका का भलीप्रकार अध्ययन कर शील संरक्षण में सावधान रहें।

19. सदाचार नियमावली एवं अन्य निर्देशिकाओं को समय समय पढ़ती-पढ़ाती रहें। उनका पालन करें और यथाशक्ति करायें, परन्तु उनके कारण क्रोध, तिरस्कार, घृणा आदि कदापि न करें।

(table of contents)

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