जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


34. युवा निर्देश

1. जीवन का स्वर्णिम समय, उत्साह पूर्वक आराधना एवं प्रभावना करने का अवसर युवावस्था है।

2. जोश में होश न खोयें। किसी प्रसंग में गुरुजनों की उपेक्षा न करें। गुरुजनों से कुछ न छिपायें।

3. दूसरों को गिराकर स्वयं ऊपर उठने का प्रयत्न कदापि न करें।

4. ईर्ष्या, उत्तेजना, तृष्णा, विषयासक्ति से बचें, प्रदर्शनादि की भावना से दूर रहें।

5. अत्यधिक संकोची प्रवृत्ति न बनायें।

6. छोटे काम करने में हीनता न समझें।

7. योग्यता एवं क्षमता हो तो नेतृत्व दें, अन्यथा अनुशासन में रहकर कार्य करें।

8. व्यसनों, विकथा, मिथ्या प्रशंसकों एवं स्वार्थीवृत्ति वाले लोगों से दूर रहें।

9. प्रत्येक क्षेत्र में नियम अवश्य बनायें और उनका विवेक पूर्वक पालन करें।

10. क्षण-क्षण में निर्णय न बदलें । अप्रामाणिक सिद्ध न हों।

11. निरंतर अध्ययनशील रहें। उपयोगी सामान्य जानकारी हर क्षेत्र में रखें और अपने विषय की अधिकृत जानकारी रखें।

12. समय, शक्ति, धन और सभी साधनों एवं सुविधाओं का सदुपयोग करें।

13. भावुकता छोड़कर, विचार एवं योग्य सलाह पूर्वक निर्णय करके ही कोई कार्य करने की आदत बनायें।

14. अल्प एवं योग्य वचन उचित समय पर बोलें।

15. योग्य के साथ व्यवहार कुशल, सेवाभावी, विनम्र, संतोषी एवं सरल भी बनें।

16. अनैतिकता से धन न कमायें। तृष्णा से दूर रहें।

17. दूसरों को आजीविका मिले, ऐसी लोकोपकारमय आजीविका चुनें।

18. आमदानी का अंश एवं अपना समय अच्छे कार्यों में अवश्य लगायें।

19. गुरुजनों की अवहेलना कदापि न करें। उनसे स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भूल न करें। उनके अनुभवों का लाभ उठायें।

20. न प्रमादी बनें, न अत्यधिक श्रम करें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

21. सम्यक् अभिप्राय, व्यवस्थित चर्या, सूक्ष्म उपयोग रखते हुए प्रशंसनीय बनें।

22. आत्म निरीक्षण करते हुए आध्यात्मिक उन्नति का भी पुरुषार्थ करें।

23. सहजता एवं सहनशीलता कभी न छोड़े।

24. अच्छे कार्यों की अनुमोदना एवं दूसरों के सद्गुणों की प्रशंसा अवश्य करें।

25. धार्मिक एवं अन्य विषयों की श्रेष्ठ पुस्तकें अवश्य पढ़े और पढ़ायें।

26. नैतिकता एवं धार्मिकता का प्रसार करें और करायें।

(table of contents)

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