जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


33. बाल एवं किशोर निर्देश

1. बड़ों का यथायोग्य आदर करें, परन्तु भयभीत न रहें।

2. चाहे किसी से मित्रता न करें। जो अध्ययनशील, सुशील, गम्भीर, उत्साही, साहसी, अनुशासित, अच्छे विचार वाले हों, उन्हीं की संगति करें।

3. अश्लील या निम्नस्तरीय साहित्य न पढ़े। अखबारादि में भी अच्छे विषय ही अल्प समय में देखें। रुचि पूर्वक उनमें समय न खोयें। इसीप्रकार टी.वी., मोबाईल, कम्प्यूटर (फिल्मों) आदि में विवेक रखें।

4. अध्ययन, गृहकार्य (होमवर्क) आदि किसी भी कार्य में आलस्य कदापि न करें।

5. धार्मिक, नैतिक एवं स्वास्थ्यादि सम्बन्धी साहित्य अवश्य पढ़ें।

6. सर्वत्र नियम एवं अनुशासन का यथासंभव पालन करें।

7. जुआ, नशा, अश्लील हँसी, चेष्टाओं एवं फिजूलखर्चे से दूर रहें।

8. सभी के प्रति सहयोगात्मक शैली अपनायें, परन्तु अपनी चर्या की उपेक्षा करते हुए, भावुकता पूर्वक नहीं।

9. सादा एवं शील युक्त वस्त्र पहनें। अपने घर की आय एवं मर्यादाओं का ध्यान रखें।

10. उधार लेने की प्रवृत्ति न बनायें ।

11. किसी की अनुचित नकल या किसी से ईर्ष्या न करें।

12. भोजन समय पर, प्रसन्नता पूर्वक, सात्विक एवं पौष्टिक करें।

13. अत्यंत मँहगी विलासिता की सामग्री का उपयोग कदापि न करें।

14. स्वच्छता की आदत बनायें। शरीर, स्थान, वस्त्र, कॉपी, पुस्तकें अथवा कोई भी सामग्री गंदी न रखें। चाहे जहाँ न रखें।

15. स्नान, मालिश, प्राणायाम, व्यायाम आदि नियम पूर्वक, उचित ढंग से करें।

16. अयोग्य विचार ही न करें, तब वचन और चेष्टायें स्वयं प्रशंसनीय होगी।

17. विनय एवं सेवा भावना रखें।

18. आत्म प्रशंसा एवं पराई निंदा न करें और न उत्साह पूर्वक सुनें।

19. छिपाकर कार्य करने की प्रवृत्ति न बनायें।

20. अपनी परिस्थिति, योग्यता और क्षमता के अनुसार ही निर्णय लें । हवाई किले न बनाते रहें।

21. किसी कार्य को छोटा न समझें । बड़ी-बड़ी योजना बनाते हुए छोटे कार्य को न निषेधे ।

22. सहनशील बनें। क्रोध की प्रवृति न बनायें। अल्प एवं मिष्ठभाषी बनें।

23. सदाचार, शील निर्देशिका, सामाजिक व्यवहारादि को समझें, पालें एवं उनका प्रसार करें।

24. विनम्रता एवं निष्पृहता पूर्वक सहयोग दें और श्रेय देते हुए दूसरों से युक्ति पूर्वक सहयोग लें।

25. याद रखें - धन, समय, बुद्धि आदि का दुरुपयोग पतन का द्वार खोलता है।

26. अपने साथ किसी भी प्रकार का अनैतिक व्यवहार होने पर घर आकर गुरुजन या अभिभावकों को शीघ्र ही अवगत करावें जिससे उसकी पुनरावृत्ति न हो पावे।

27. बड़ी से बड़ी गलती हो जाने पर भी, गुरुजनों से छिपाकर टेंशन (तनावग्रस्त) न करें, न घर छोड़कर कहीं भागें और आत्मघात की तो सोचें ही नहीं। धैर्य पूर्वक समस्या का समाधान करें।

(table of contents)

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