जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


32. शिशुपालन निर्देश

1. शिशु गर्भ में आने पर ब्रह्मचर्य से रहें । सदैव प्रसन्न रहें। उत्तम विचार करें । सत्साहित्य पढ़ें। भक्ति, स्वाध्याय, सामायिकादि करें।

2. अधिक उपवासादि न करें।

3. लोह, कैल्शियम, विटामिनयुक्त पोषक आहार लें। लोहे की कढ़ाई में सब्जी आदि बनायें। चना, गुड़, मूंग, जौ, संतरा, आँवला, नारियल, अनार, दूधादि का आवश्यकतानुसार प्रयोग करें।

4. गिलोय, चंदन, इलायची, सौंफ, मुलहठी आदि का प्रयोग करें।

5. आवश्यक सौम्य औषधियाँ वैद्य की सलाह अनुसार लें।

6. गरिष्ठ, वासी, बाजारू भोजन, रिफाइन्ड तेल, चाय, तीक्ष्ण औषधियों से बचें।

7. उचित रीति से गृहकार्य श्रम (चक्की चलाना आदि) व्यायाम एवं प्राणायामादि उचित ढंग से करें। लड़ाई, अश्लील हँसी-मजाक, शील विरुद्ध ड्रेस-श्रृंगार आदि करें तो नहीं, देखें भी नहीं।

8. भगवन्तों, संतो एवं महापुरुषों की सौम्य प्रभावक तेजमय मुद्रा को निहारें एवं विचारें ।

9. वस्त्र ढीले पहनें, संयत चाल से चलें।

10. भक्ति, दान, सेवा, परोपकार आदि के कार्य अवश्य करें।

11. मन में भयभीत न रहें, कुढ़े नहीं।

12. शिशु को योग्य वात्सल्य तो दें, परन्तु अनियमित चर्या या दुष्प्रवृत्तियों से बचायें।

13. बच्चों को हीन आचरण वाले लोगों से दूर रखे। प्रारम्भ से ही अच्छी-अच्छी बातें एवं चेष्टाएँ सिखायें।

14. आलस्यवश उसे अकेला न छोड़ें।

15. अभक्ष्य, गरिष्ठ या अयोग्य खान-पान एवं फैशनेविल ड्रेस/प्रसाधनों से बचायें। पौष्टिक आहारादि नियमित समय पर, चिकित्सक की सलाह से दें।

16. शिक्षाप्रद चित्र खिलौने, पुस्तकें दिखायें । धार्मिक, नैतिक, दैनिक उपयोगी अच्छे शब्दों का परिचय करायें।

17. अनुचित ताड़नादि द्वारा भयभीत न करें।

18. अश्लील हास्य या चेष्टायें कदापि न करें।

19. बच्चा समझता नहीं, ऐसा न समझें, उसे उसकी भाषा में ज्ञान करायें।

20. गुनगुनाने के बहाने, अच्छे गीत एवं अच्छी चेष्टाएं सिखायें।

21. मालिश स्नानादि में सावधानी रखें।

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