जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


30. अल्प बचत निर्देश

1. घर में प्रत्येक सदस्य के मन में स्वयं के धन की लालसा होती है । अत: प्रत्येक सदस्य की एक एक गोलक रखें। उनके एक-एक खाते पोस्ट ऑफिस, बैंक, बीमा में भी चलायें जो उन्हीं की गोलक की राशि से भरें।

2. उसी संग्रहीत राशि में से, दान एवं खर्च के भी संस्कार दें। ऐसा न करें कि वे आय-व्यय के सम्बन्ध में कुछ सीखें ही नहीं। मात्र खर्च के सम्बन्ध में बड़े लोगों से माँगते ही न रहें।

3. समयानुसार उचित रीति से उन्हें गृहकार्यों एवं पाठशाला आदि सम्बन्धी कार्यों, घर की व्यवस्थाओं में भी लगाएँ , रद्दी, पुटठा, प्लास्टिक, काँच, लोहा, पुराने कपड़े, अनुपयोगी वस्तुओं का संग्रह एवं स्वयं के निर्देशन में विक्रय करावें। एक दो घण्टे उनसे व्यापारादि में सहयोग लें, पैकिंग, शिल्प कला आदि सिखायें, जिससे जीवन में वे कभी बेरोजगारी के शिकार न हों। स्वतंत्र आजीविका भी चाहे जब कर सकें। पढ़ाना, कम्प्यूटरादि, खाते उतारना आदि सिखायें।

4. बच्चों को भी आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनायें। छोटे काम करने में भी उनकी शर्म छुड़ायें।

धन का सदुपयोग

1. न्याय एवं श्रमपूर्वक सीमित कमाएँ।

2. आय-व्यय का हिसाब सूक्ष्मता से रखें।

3. व्यय के विषय लिखकर उपयोगितानुसार उनके लिए राशि निश्चित करें। जैसे - भोजन, घी, सब्जी, फल, अनाज, मसालें।

4. अनावश्यक मिष्ठान पकवानों से बचें।

5. कपड़ों, आवास, उपकरणों में सादगी रखें, परन्तु लोभवश हल्की क्वालिटी का सामान या खाद्य सामग्री नहीं लें।

6. विलासिता एवं प्रदर्शन से दूर रहें।

7. दान भी मान के वशीभूत होकर उपयोगी न होने पर नहीं दें। उपयोगी होने पर अच्छे लोगों को विवेक पूर्वक दें। बड़ी संस्थाओं और बड़े आयोजनों की अपेक्षा छोटी संस्थाओं और ज्ञान प्रधान छोटे आयोजनों को प्राथमिकता दें।

8. लोकोपकारी कार्य स्वयं करें एवं उनमें सहयोग करें।

(table of contents)

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