जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


26. छात्रावास, अधीक्षक निर्देश

  1. छात्रों को पुत्रवत् समझते हुए, अंतरंग वात्सल्य पूर्ण व्यवहार करें।

  2. उचित निर्देश एवं नियमावली, अभिप्राय एवं प्रयोग समझाते हुए कहें और उनको विचारने का अवसर दें।

  3. नियमावली के बिन्दुओं पर अपने-अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करने के लिए सभा करायें। जिससे नियमावली एवं उसकी उपयोगिता भलीप्रकार भासित हो जाये।

  4. समझ पूर्वक ही स्थाई अनुशासन संभव है। अत: ध्यान रखें कि छात्र भयभीत न हो पायें।

  5. भय का वातावरण न बने इसके लिए अनावश्यक अत्यधिक न डाँटे, जोर से न बोलें। कोई बात जल्दी में न कहे अथवा जल्दी-जल्दी अनेक निर्देश न दें । शारीरिक प्रताड़ना तो करें ही नहीं, कहने के बाद पूछ ले कि भलीप्रकार समझ में आया या नहीं।

  6. दण्ड व्यवस्था ऐसी बनायें जिससे मानसिक विकास हो, भूल का एहसास हो अर्थात् दण्ड के रूप में अतिरिक्त अध्ययन, सफाई, पाठ जपादि करायें। धीठता करने पर सभी से सम्पर्क विच्छेद (अल्प समय के लिए) कर दें।

  7. चित्रकला, लेखन, पठनादि करायें।

  8. गलती एवं सही के नंबर (- एवं +) देते हुए कार्ड बनायें । पश्चात् मासिक, द्विमासिक दण्ड व्यवस्था करें।

  9. पाक्षिक एवं मासिक कोर्स तैयार करें। उसे निर्धारित समय में पूरा कर, उसी के आधार से प्रश्न मंच एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम करायें। ज्ञान एवं अभिव्यक्ति विकास के कार्यक्रम भी करायें।

  10. भोजन एवं चर्या स्वास्थ्य के नियमों के अनुकूल रखें। किसी प्रसंग में असंतोष न बढ़ने दें।

  11. किसी की शिकायत पर सीधे ही विश्वास न करें। पूर्ण जानकारी लेकर, दोनों पक्षों को सुनकर योग्य निर्णय लें। समस्या को सुनने एवं सुलझाने की सहज प्रक्रिया अपनायें।

  12. परस्पर में विश्वास एवं वात्सल्य पूर्ण वातावरण बनायें, जिससे कोई दोष होने पर छात्र निशंकता से कह सके।

  13. छात्र की परेशानी मुद्रा से समझ में आने पर भी उसे सुलझाने की पहल स्वयं करें। उपेक्षा कदापि न करें।

  14. सर्व विषयों सम्बन्धी सत्साहित्य पढ़ने की प्रेरणा, व्यवस्था एवं अवसर दें।

  15. शारीरिक एवं मानसिक दोनों विकास का ध्यान रखें।

  16. दोनों पक्ष (जैसे - दया की प्रेरणा एवं निरर्थक और अनुचित दया का निषेध) समझायें, जिससे छात्र भावुक न बनें अपितु विवेकी बनें।

  17. कष्ट सहिष्णु बनने का अभ्यास करायें, जैसे - कभी एकान्त सेवन, कभी समूह में ही रहना, सोना, कभी देर से भोजन, कभी अव्यवस्थित भोजन, कभी अतिरिक्त कार्य, कभी खेल, कभी विश्राम आदि भी करायें।

  18. तात्कालिक सूझबूझ विकास के लिए प्रयत्न करें।

  19. दुर्घटनाओं से बचने के उपायों पर लेखन एवं भाषण करायें।

(table of contents)

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