जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


25. आश्रम, विद्यालय निर्देश

  1. समस्त चयन अत्यन्त विवेक पूर्वक ही करें।

  2. नियमावली का पालन सम्यक् प्रकार से करायें । समय-समय पर निरीक्षण आवश्यक है कि किसी नियम में शिथिलता तो नहीं हो रही।

  3. प्रत्येक अधिकारी, कर्मचारी एवं सदस्य का संवैधानिक रूप से प्रामाणिक परिचय एवं उसकी सम्पत्ति और सामान की सूची रजिस्टर में रखें।

  4. समस्त गतिविधियों पर सूक्ष्मता से नजर रखें।

  5. समय-समय पर मीटिंग आवश्यक है।

  6. विशिष्ट समागम अवश्य करवायें । शिविर एवं गोष्ठियाँ करायें।

  7. अधिष्ठाता एवं अध्यापक विद्यार्थियों से पुत्र-पुत्रीवत् व्यवहार करें । उनके सर्वांगीण विकास एवं श्रेष्ठ संस्कारों के लिए तुच्छ स्वार्थ, प्रमादादि को त्यागें । पाठ्य पुस्तकों का मनोयोग पूर्वक अध्ययन करायें।

  8. नियमों का पालन करने के लिये संकल्पित करें।

  9. व्यसन, नकल, ईर्ष्या आदि का त्याग करायें।

  10. स्वच्छता, मितव्ययता, विनम्रता, सरलता, सौहार्द आदि मानवीय गुणों के प्रति निष्ठावान बनायें।

  11. साधक एवं विद्यार्थी गुरुजनों का यथायोग्य सम्मान एवं सेवा करें। अनुशासन पालें। अधिक से अधिक लाभ लेते हुए अपनी योग्यता बढ़ावें ।

  12. पंक्तिबद्ध व्यवस्थित बैठने, धीरे चलने, खड़े-खड़े बातें न करने की आदत डालें।

  13. कार्य के पश्चात् सामान ढंग (उचित तरीके) से यथास्थान रखे जाने के बाद ही अध्यापक या व्यवस्थापक वहाँ से जावें। अतिआवश्यक होने पर अतिशीघ्र व्यवस्थित करें और करायें । व्यवस्था मात्र बच्चों पर कभी न छोड़े।

  14. गंदी एवं हल्की आदतों को छोड़ने का संकल्प पूर्वक उग्र पुरुषार्थ करें । टोकने पर हल्केपन से न लें और न टालें।

(table of contents)

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