25. आश्रम, विद्यालय निर्देश
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समस्त चयन अत्यन्त विवेक पूर्वक ही करें।
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नियमावली का पालन सम्यक् प्रकार से करायें । समय-समय पर निरीक्षण आवश्यक है कि किसी नियम में शिथिलता तो नहीं हो रही।
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प्रत्येक अधिकारी, कर्मचारी एवं सदस्य का संवैधानिक रूप से प्रामाणिक परिचय एवं उसकी सम्पत्ति और सामान की सूची रजिस्टर में रखें।
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समस्त गतिविधियों पर सूक्ष्मता से नजर रखें।
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समय-समय पर मीटिंग आवश्यक है।
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विशिष्ट समागम अवश्य करवायें । शिविर एवं गोष्ठियाँ करायें।
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अधिष्ठाता एवं अध्यापक विद्यार्थियों से पुत्र-पुत्रीवत् व्यवहार करें । उनके सर्वांगीण विकास एवं श्रेष्ठ संस्कारों के लिए तुच्छ स्वार्थ, प्रमादादि को त्यागें । पाठ्य पुस्तकों का मनोयोग पूर्वक अध्ययन करायें।
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नियमों का पालन करने के लिये संकल्पित करें।
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व्यसन, नकल, ईर्ष्या आदि का त्याग करायें।
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स्वच्छता, मितव्ययता, विनम्रता, सरलता, सौहार्द आदि मानवीय गुणों के प्रति निष्ठावान बनायें।
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साधक एवं विद्यार्थी गुरुजनों का यथायोग्य सम्मान एवं सेवा करें। अनुशासन पालें। अधिक से अधिक लाभ लेते हुए अपनी योग्यता बढ़ावें ।
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पंक्तिबद्ध व्यवस्थित बैठने, धीरे चलने, खड़े-खड़े बातें न करने की आदत डालें।
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कार्य के पश्चात् सामान ढंग (उचित तरीके) से यथास्थान रखे जाने के बाद ही अध्यापक या व्यवस्थापक वहाँ से जावें। अतिआवश्यक होने पर अतिशीघ्र व्यवस्थित करें और करायें । व्यवस्था मात्र बच्चों पर कभी न छोड़े।
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गंदी एवं हल्की आदतों को छोड़ने का संकल्प पूर्वक उग्र पुरुषार्थ करें । टोकने पर हल्केपन से न लें और न टालें।
(table of contents)