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स्वास्थ्यकारक, सात्त्विक भोजन बनाना सीखें। समझे - कब, कितना, कैसा भोजन किसे एवं कैसे करना चाहिए।
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बाजारों में बिकने वाली अशुद्ध, हानिकारक, मंहगी खाद्य सामग्री से दूर रहें।
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अभक्ष्य पदार्थों को त्यागें।
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भोजन से चिकित्सा को समझें। भोजन के औषधीय गुणों का यथार्थ ज्ञान करके उनका प्रयोग करें, जिससे रोग उत्पन्न ही न हों।
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मिथ्यानुकरण करते हुए अपनी भोजन-संस्कृति को विकृत ना करें।
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भोजन के समय प्रसन्नता एवं निश्चिंतता रखें । विचारें - यह भोजन संयम का निमित्त बने और कब अनाहारी दशा होवे।
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बिना हाथ धोये किसीप्रकार की भोजन सामग्री न खावें।
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भोजन धीरे-धीरे चबाते हुए करें। पानी भी घुट-घुट पियें।
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भोजन के समय दुश्चिंतन, विकथा, शोरगुल, तीव्र कर्कश स्वर में बोलना वर्जित रहे।
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भोजन टी.वी. या कम्प्यूटर पर बैठे-बैठे न करें । उस समय मोबाइल बंद रखें। भोजन में उतावलापन न करें।
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खड़े-खड़े, जूते पहने, जूठे हाथों से उठाते हुए, प्रदर्शन पूर्वक भोजन न करें।
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भोजन हाथ-पैर धोकर, वस्त्र शुद्धि पूर्वक करें । तदुपरांत वज्रासन से बैठकर कायोत्सर्ग करें। धीरे-धीरे चलें । बायीं करवट थोड़ी देर लेटें । न सोयें, न दौड़े, न बैठकर निरंतर कार्य करते रहें। शरीर का उचित हलन-चलन पाचन के लिए आवश्यक है। थोड़ी देर बाद आवश्यकतानुसार हरड़, लौंग, इलायची, सौंफ आदि चूसते हुए पानी पी लें। पेट साफ रखने का निरंतर प्रयत्न रखें।
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अल्पाहारी बने, आसक्त होकर गरिष्ठ, तामसिक भोजन तो करें ही नहीं, योग्य भोजन भी अधिक और जल्दी न करें।
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चिकित्सक के परामर्श बिना एक ही पदार्थ दूध, फल, सब्जी आदि अत्यधिक मात्रा में सेवन न करें। भोजन में सभी विटामिन एवं खनिजादि पोषक तत्त्वों का समावेश एवं संतुलन रखें।
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देशी बीज के खाद्यान्न एवं सब्जियाँ खरीदने का प्रयत्न करें, जिनमें जहरीले, कीटनाशक एवं वृद्धिकारक रसायनों का प्रयोग न हो।
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चावल, दालें आदि भी बिना पॉलिश की खरीदें।
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समस्त सामग्री - खाद्यान्न, मसाले, सब्जियाँ आदि धोकर ही उपयोग करें।
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एल्यूमीनियम के कुकर, बर्तन आदि का प्रयोग रसोई में न करें । लोहे की एक कढ़ाई का प्रयोग रसोई में नित्य ही करें।
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भोजन में एक साथ अनेक पदार्थ न खावें । तली हुई वस्तुएँ मात्र स्वाद के लिए अधिक न खावें।
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बेसन, मेंदा एवं मिठाईयों से बचें।
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मौसम के अच्छे फल उचित मात्रा में ( अधिक नहीं) लेवें। भलीप्रकार से दो या तीन बार धोकर ही लें।
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रासायनिक घोल के पके केला, आम तथा बहुत बड़े फलों से बचें।
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चाय, काफी की जगह आयुर्वेदिक पेय आवश्यकतानुसार पियें।
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प्रात: खाली पेट दूध-आदि भारी नाश्ता न करें।
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दलिया, खिचड़ी, सब्जी के साथ घी मिलाकर खाते रहें ।
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चना, उड़द, मसूर, सेम आदि का प्रयोग भी आवश्यकता अनुसार करें।
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आटा थोड़ा मोटा रखें।
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दूध का प्रयोग भी अधिक नहीं, परन्तु पर्याप्त मात्रा में करें । छाछ भी आवश्यकतानुसार लें।
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शक्कर के स्थान पर बिना केमिकल का गुड़, खांड़, मीठे फलादि का उपयोग करें।
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भोजन, पानी नियम पूर्वक पियें, अनर्गल नहीं।
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शारीरिक श्रम भी पर्याप्त करें। स्वावलम्बी चर्या रखें। मशीन एवं सेवकों के सर्वथा आधीन होकर आलसी न बनें।
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किसी कार्य को अहसान या अभिमान की भावना से रहित होकर कर्तव्य एवं सौभाग्य समझते हुए करें। इससे प्रशंसनीय भी होंगे और प्रसन्नता भी रहेगी, तब स्वास्थ्य स्वयं ठीक रहेगा।
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समय-समय पर यथाशक्ति उपवास, एकाशन, ऊनोदर आदि भी करें।