जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


24. भोजन निर्देश

  1. स्वास्थ्यकारक, सात्त्विक भोजन बनाना सीखें। समझे - कब, कितना, कैसा भोजन किसे एवं कैसे करना चाहिए।

  2. बाजारों में बिकने वाली अशुद्ध, हानिकारक, मंहगी खाद्य सामग्री से दूर रहें।

  3. अभक्ष्य पदार्थों को त्यागें।

  4. भोजन से चिकित्सा को समझें। भोजन के औषधीय गुणों का यथार्थ ज्ञान करके उनका प्रयोग करें, जिससे रोग उत्पन्न ही न हों।

  5. मिथ्यानुकरण करते हुए अपनी भोजन-संस्कृति को विकृत ना करें।

  6. भोजन के समय प्रसन्नता एवं निश्चिंतता रखें । विचारें - यह भोजन संयम का निमित्त बने और कब अनाहारी दशा होवे।

  7. बिना हाथ धोये किसीप्रकार की भोजन सामग्री न खावें।

  8. भोजन धीरे-धीरे चबाते हुए करें। पानी भी घुट-घुट पियें।

  9. भोजन के समय दुश्चिंतन, विकथा, शोरगुल, तीव्र कर्कश स्वर में बोलना वर्जित रहे।

  10. भोजन टी.वी. या कम्प्यूटर पर बैठे-बैठे न करें । उस समय मोबाइल बंद रखें। भोजन में उतावलापन न करें।

  11. खड़े-खड़े, जूते पहने, जूठे हाथों से उठाते हुए, प्रदर्शन पूर्वक भोजन न करें।

  12. भोजन हाथ-पैर धोकर, वस्त्र शुद्धि पूर्वक करें । तदुपरांत वज्रासन से बैठकर कायोत्सर्ग करें। धीरे-धीरे चलें । बायीं करवट थोड़ी देर लेटें । न सोयें, न दौड़े, न बैठकर निरंतर कार्य करते रहें। शरीर का उचित हलन-चलन पाचन के लिए आवश्यक है। थोड़ी देर बाद आवश्यकतानुसार हरड़, लौंग, इलायची, सौंफ आदि चूसते हुए पानी पी लें। पेट साफ रखने का निरंतर प्रयत्न रखें।

  13. अल्पाहारी बने, आसक्त होकर गरिष्ठ, तामसिक भोजन तो करें ही नहीं, योग्य भोजन भी अधिक और जल्दी न करें।

  14. चिकित्सक के परामर्श बिना एक ही पदार्थ दूध, फल, सब्जी आदि अत्यधिक मात्रा में सेवन न करें। भोजन में सभी विटामिन एवं खनिजादि पोषक तत्त्वों का समावेश एवं संतुलन रखें।

  15. देशी बीज के खाद्यान्न एवं सब्जियाँ खरीदने का प्रयत्न करें, जिनमें जहरीले, कीटनाशक एवं वृद्धिकारक रसायनों का प्रयोग न हो।

  16. चावल, दालें आदि भी बिना पॉलिश की खरीदें।

  17. समस्त सामग्री - खाद्यान्न, मसाले, सब्जियाँ आदि धोकर ही उपयोग करें।

  18. एल्यूमीनियम के कुकर, बर्तन आदि का प्रयोग रसोई में न करें । लोहे की एक कढ़ाई का प्रयोग रसोई में नित्य ही करें।

  19. भोजन में एक साथ अनेक पदार्थ न खावें । तली हुई वस्तुएँ मात्र स्वाद के लिए अधिक न खावें।

  20. बेसन, मेंदा एवं मिठाईयों से बचें।

  21. मौसम के अच्छे फल उचित मात्रा में ( अधिक नहीं) लेवें। भलीप्रकार से दो या तीन बार धोकर ही लें।

  22. रासायनिक घोल के पके केला, आम तथा बहुत बड़े फलों से बचें।

  23. चाय, काफी की जगह आयुर्वेदिक पेय आवश्यकतानुसार पियें।

  24. प्रात: खाली पेट दूध-आदि भारी नाश्ता न करें।

  25. दलिया, खिचड़ी, सब्जी के साथ घी मिलाकर खाते रहें ।

  26. चना, उड़द, मसूर, सेम आदि का प्रयोग भी आवश्यकता अनुसार करें।

  27. आटा थोड़ा मोटा रखें।

  28. दूध का प्रयोग भी अधिक नहीं, परन्तु पर्याप्त मात्रा में करें । छाछ भी आवश्यकतानुसार लें।

  29. शक्कर के स्थान पर बिना केमिकल का गुड़, खांड़, मीठे फलादि का उपयोग करें।

  30. भोजन, पानी नियम पूर्वक पियें, अनर्गल नहीं।

  31. शारीरिक श्रम भी पर्याप्त करें। स्वावलम्बी चर्या रखें। मशीन एवं सेवकों के सर्वथा आधीन होकर आलसी न बनें।

  32. किसी कार्य को अहसान या अभिमान की भावना से रहित होकर कर्तव्य एवं सौभाग्य समझते हुए करें। इससे प्रशंसनीय भी होंगे और प्रसन्नता भी रहेगी, तब स्वास्थ्य स्वयं ठीक रहेगा।

  33. समय-समय पर यथाशक्ति उपवास, एकाशन, ऊनोदर आदि भी करें।

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