जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan

23. स्वास्थ्य

  1. प्रात: शीघ्र उठे । इष्ट स्मरण, तत्त्वविचारादि के पश्चात् दिन भर के विशेष कार्य के सम्बन्ध में भी विचार कर लें। रात्रि में देर तक न जागें।

  2. विश्राम, व्यायाम, प्राणायाम का भी ध्यान रखें।

  3. तपश्चरण, जप, संयमादि, अपने पाप कर्मों की निर्जरा हेतु एवं परिणामों की विशुद्धि हेतु अवश्य करें।

  4. तले हुए व्यंजन, मिठाई, नमकीन आदि न खायें।

  5. रिफाइन्ड तेल, शक्कर, बिना मौसम के फल, इन्जेक्शन या घोल आदि से पके फल न खायें। इन्जेक्शन से निकाला दूध न पियें।

  6. उपवास और लंघन के पहले तथा बाद में ठोस एवं पूर्ण आहार न करें।

  7. रोग-अवस्था में भोजन का आग्रह न करें, आवश्यक होने पर पेय-आदि चिकित्सक की सलाह से लें।

  8. संतुलित भोजन के भी सुपाचन हेतु पर्याप्त शारीरिक श्रम आवश्यक है। संतोषी एवं सादा जीवन का सूत्र अपनाते हुए विचारों की निर्मलता, प्रसन्नता एवं निश्चिंतता का विशेष ध्यान रखें।

  9. विषयों में आसक्त न हों।

  10. धर्म के नाम पर भी अविवेक पूर्वक ऊँची-नीची क्रियाएँ एवं नियम न करें। प्रयोजन पर दृष्टि रखते हुए, योग्य चर्या पालें, जिससे स्वयं या अन्य को आकुलता न हो और परिणाम निर्मल रहें।

  11. चिकित्सक के उचित परामर्श पर ध्यान देते हुए, उसे सहयोग करें; अन्यथा अयोग्य व्यवस्थाओं में फंसकर समस्त नियमादि टूटेगें।

  12. चलने-बैठने-लेटने एवं काम करने के सही तरीके अपनायें। कपड़े आदि भी ऋतु आदि के अनुकूल उचित तरीके से पहनें।

  13. शरीर पर अति भारारोपण किसी तरह न करें। न अधिक भोजन, न अधिक काम और न प्रमादी और विलासी बनाएं।

  14. सभी के प्रति सद्भावना एवं सद्-व्यवहार रखें।

  15. समस्या को उलझायें नहीं । विवेक एवं त्याग पूर्वक समाधान निकालें ।

  16. मानसिक घुटन (टेंशन), ईर्ष्या, तृष्णा, क्रोध, मान, भय, प्रमादादि दुर्भाव स्वास्थ्य के अंतरंग शत्रु हैं, इन्हें समझ पूर्वक अवश्य छोड़ें।

  17. अन्य निर्देशिकाओं का पालन करें।

  18. रोग की प्रथम अवस्था में ही योग्य चिकित्सक के अनुसार पथ्य-कुपथ्य, निर्दोष औषधि एवं चर्या का ध्यान रखें।

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