जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


22. ईमानदारी :arrow_up:

1. संतोष, सादगी, मितव्ययता, स्वावलम्बन और कष्ट सहिष्णुता पूर्वक ही व्यक्ति ईमानदार रह सकता है।

2. आवश्यकता एवं श्रम के अनुसार ही धन, वस्तु आदि ग्रहण करें। अनावश्यक होने पर कुछ भी न लें। बिना मूल्य मिलने पर भी ललचावें नहीं।

3. किसी से अधिक वस्तु या धनादि लेने का प्रयत्न न करें। सामूहिक कार्य का भी समस्त श्रेय, स्वयं ही लेने की आदत न डालें। व्यवहार में भी व्यक्तिगत कार्य भी, सहयोग से ही सम्पन्न होते हैं; अत: दूसरों के सहयोग एवं अंश को न नकारें, न कम करें।

4. किसी को न कम तौलें, न कम नापें, न कम समझें । सह अस्तित्व की भावना उर्ध्व रखें।

5. लोभवश अनुचित मिलावट न करें। अहं प्रदर्शन से बचें। सम्मान की अतिरिक्त चाह, ईर्ष्या, विषयों की आसक्ति भी व्यक्ति को बेईमान बना देती है। नशा, जुआ, कुशीलादि व्यसनों एवं प्रमाद से दूर रहें।

6. वस्त्र, खान-पान, घर और फर्नीचरादि सादा होने से विलासिता की सामग्री न होने से, अपना कार्य स्वयं करने से - हीनता नहीं, गौरव का अनुभव करें।

7. कर्तव्य, अनुशासन, नियम, वचन एवं समयबद्धता का पालन करने में उपहास या मिथ्या आलोचना एवं कष्टों की परवाह न करें।

8. अच्छी संगति करें एवं अच्छा साहित्य पढ़ें।

9. स्वार्थी और मिथ्या प्रशंसकों से सावधान रहें।

10. परमार्थ से स्व को स्व और पर को पर समझकर, पर से विरक्त हो, स्व में संतुष्ट रहने का पुरुषार्थ करें।

11. ज्ञेयों को मात्र ज्ञेय ही समझें, उनमें इष्ट-अनिष्ट की कल्पना करते हुए राग-द्वेष न करें।

2 Likes