जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


20. स्वच्छता निर्देश :arrow_up:

1. स्वच्छता के नाम पर कषाय न करें। फिनाइलादि हिंसक सामग्री का प्रयोग न करें। अनावश्यक पानी, साबुन आदि खर्च न करें। स्वाध्यायादि को गौण न करें।

2. प्रात: उठकर बिस्तर वैसे ही न छोड़े, उठाकर व्यवस्थित रखें। चादर, कवर आदि जो गंदे हों तो धोने के लिए निकालें। झाडू व्यवस्थित यत्नाचार पूर्वक लगावें। अलमारी, तख्त, चौकी, खिड़की, दरवाजे को कपड़े से साफ करें।

3. समय-समय पर दीवालें, छत, उपकरणादि भी साफ करते रहें । झाडू, सूप आदि भी व्यवस्थित रखें।

4. सामान यथास्थान व्यवस्थित ही रखें, चाहें जहाँ नहीं छोड़े, ना विखरायें।

5. स्नान के बाद बाल्टी, तसला, लोटा, साबुन, डिब्बा, ब्रुशादि भी पोंछ कर रखें। बर्तन समय पर माँजें । वस्त्रों, उपकरणों एवं पुस्तकों से गंदे हाथ न लगायें। अनावश्यक निशान न लगायें, चाहे जैसे मोड़े नहीं, कवर चढ़ावें, झाड़ते पोंछते एवं धूप दिखाते रहें।

7. खाद्य सामग्री को भी समय-समय पर धूप दिखाकर शोधन करते रहें।

8. बर्तन जूठे न छोड़े, चाहे कहीं थूकें नहीं, गंदे हाथ धोकर कपड़े से पोछे। जूते आदि भी व्यवस्थित ही उतारें।

9. बरसात में छतों, नाली आदि की सफाई पहले से ही कर दें। अनावश्यक सामग्री खुले स्थान से हटा दें, जिससे जीवों की उत्पत्ति अनावश्यक रूप से न हो सके।

10. मानसिक स्वच्छता- सत्-असत् विवेक, सत्संगति, सद्विचार, स्वाध्याय, तात्त्विक-वस्तुनिष्ठ चिंतन, सात्त्विक आहार-विहार, कर्तव्य पालन, परोपकार, भक्ति, संयम, सेवा और दोष होने पर प्रायश्चित्तादि से मन स्वच्छ, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता है।

11. आत्म साधना से मन स्थिर होता है और सच्ची प्रसन्नता मिलती है।

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