जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


15. अतिथि-सत्कार :arrow_up:

1. अतिथि के आने पर मुद्रा एवं वचनों से हर्ष प्रगट करें। बड़ों को योग्य अभिवादन कर खड़े हों और उनका सामान आदि लेकर रखवाएँ।

2. समय अनुसार स्नान, भोजन, जलपान, औषधि, विश्राम आदि की उचित व्यवस्था करें।

3. कार्य में सहयोग की व्यवस्था करें।

4. मन में कोई भार या दुर्भाव न आने दें। शिष्ट वचनों में अपनी उलझन या असमर्थता हो तो कह दें। कपट पूर्वक ऊपर ऊपर से शिष्टाचार मात्र ही नहीं करते रहें।

5. सहज व्यवहार करें।

6. उनके वात्सल्य को भी सहजता से स्वीकार करें।

7. परिस्थिति के अनुसार उसे अल्प या अधिक समय अवश्य दें।

8. योग्य रीति से विदाई दें।

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