जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


12. लघुजनों के प्रति व्यवहार :arrow_up:

1. अन्तरंग स्नेह रखें। उनके उन्नत एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए मंगल कामना एवं समय-समय पर उचित और आवश्यक निर्देश एवं नियम देवें।

2. अच्छे संस्कारों के लिए सक्रिय प्रयत्न करें। पाठशाला, शिविर, गोष्ठी, प्रतियोगिताएं आदि आयोजित करें। इनके लिये प्रेरणा, सहयोग, प्रोत्साहन आदि करें।

3. कुसंग, कुव्यसनों एवं कुत्सित साहित्य से बचायें।

4. उलझनों को सहानुभूति पूर्वक सुलझायें, उचित सलाह दें।

5. उनसे अपनी तुलना करके ईर्ष्यादि कदापि न करें, उनकी उन्नति में प्रसन्नता व्यक्त भी करें।

6. तिरस्कार या ईर्ष्यापूर्वक उपेक्षापूर्ण व्यवहार न करें।

7. उनके द्वारा कुछ पूछने पर योग्य रीति से बतायें और न पूछने पर अपमान न समझे । आवश्यक होने पर सहजता से अपनी ओर से बता देवें। न मानने पर भी क्षोभ न करें।

8. सबसे अत्यधिक निकटता न बनायें। आवश्यक दूरी (आवास, भोजन, अध्ययनादि में) बनाये रखें, जिसस मर्यादा एवं अनुशासन बना रहे।

9. उन्हें अपनी व्यवस्थाओं में अनावश्यक न उलझायें, परन्तु पूर्णत: अनभिज्ञ भी न रखें।

10. उनके दोषों के सम्बन्ध में अन्य प्रकार से जानकारी मिलने पर प्रथम भूमिका में ही निषेध कर दें। प्रतिष्ठा बिन्दु न बनने दें अर्थात् दोषों का उपगूहन पूर्वक निराकरण करें।

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