जीव ! तैं मूढ़पना कित पायो |
सब जग स्वारथ को चाहत हैं, स्वारथ तोहि न भायो || टेक ||
अशुचि अचेत दुष्ट तन माहीं, कहा जान विरमायो |
परम अतीन्द्रिय निजसुख हरिकै, विषय रोग लपटायो || १ ||
चेतन नाम भयो जड़ काहे, अपनो नाम गमायो |
तीन लोक को राज छांड़िकै, भीख मांग न लजायो || २ ||
मूढ़पना मिथ्या जब छूटै, तब तू सन्त कहायो |
‘द्यानत’ सुख अनन्त शिव विलसो, यों सद्गुरु बतलायो || ३ ||
Artist- पं. द्यानतराय जी