जयति जिनवर जयति जिनवर | jayati jinvar jayati jinvar

(तर्ज -हे प्रभु आनन्ददाता…)

जयति जिनवर जयति जिनवर, जयति जय जयकार है।
शीश चरणों में नवाऊँ, दर्श मंगलकार है । टेक।।

ध्यान मुद्रा अचल आसन दृष्टि नाशा सोहती।
भेदज्ञान जगावती जिनमूर्ति भवि मन मोहती ।।
भिन्न रागादिक करम सब, भिन्न जाननहार है ।।1।।

निस्सार जग वैभव तजा, निज आत्म वैभव पा लिया।
निर्ग्रन्थ हो स्वामिन् जगत को, मुक्तिपथ दर्शा दिया।।
जिनवर चरण की शरण ले, ध्याऊँ समय का सार है।2।।

अनुपम अहो जिनरूप है, अनुपम अहो शुद्धात्मा।
ध्यावें सहज शुद्धात्मा, हो जांय वे सिद्धात्मा।।
मंगलमयी ध्रुव आत्मा, निश्चय सु-तारणहार है।3।।

उपकार जिनवर आपका, पाया सहज शिवपंथ मैं।
पुरुषार्थ हो ऐसा प्रभो, होऊं सहज निर्ग्रन्थ मैं ।।
निर्द्वन्द हो निजपद लहूँ, मैं भावना अविकार है।4।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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