जय जय श्री आदि जिन, तुम हो तारन तरन, भविजन प्यारे।
इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे ॥टेक॥
प्रभु तुम सर्वार्थसिद्धि ते आये, माता मरूदेवी के सुत कहाये।
नाभि नृप के नंदन तुमको शत शत वंदन, हों हमारे ।।
इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे ।।1।।
कर्म युग के प्रथम तुम विधाता, लोक हित मार्ग के आदि ज्ञाता।
अंक अक्षर कला, तुमसे प्रगटे प्रभो, शिल्प सारे ।।
इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे ।।2।।
देख नीलांजना के निधन को, राज छोड़ा गये नाथ वन की।
योग साधा कठिन, कर्म बन्धन गहन, तोड़ डारे ।।
इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे ॥3॥
सिद्ध परमात्म-पद पा गये तुम, शंभु ब्रह्मा जिनेश्वर हुए तुम।।
सिर नवाते हुए, गुणगण गाते हुए, गणधर हारे॥
इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे ॥4॥
नाथ अपनी चरण भक्ति दीजे, आत्मगुण सिन्धु में मग्न कीजे।।
हीजे आवागमन, शिवपुर में हो गमन, कर्म झारे ।।
इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे ॥5॥