जाननहार को जान, फँसो मत ज्ञेयन में।। टेक।।
क्या गर देखे जग भर तुझको, तू भी देखे दुनियाँ भर को।
देखनहार को देख, फँसो मत दृश्यन में।। 1।।
माने मैं भोगूँ भोगन को, पर भोगे नित आकुलता को।
वेदनहार को वेद, फँसो मत भोगन में ॥ 2॥
व्यर्थ जगत में क्यों भरमावे, निज को जाने ही सुख पावे।
करले भेद-विज्ञान, फँसो मत विषयन में।। 3।।
अनुभव रस का रसिया होना, तृप्त सदा ही निज में रहना।
ध्याओ ध्येय महान, फँसो मत ज्ञेयन में।। 4।
आतम आराधक ही साधक, प्रगटे साध्य सहज सुखदायक।
कहलावे भगवान, फँसो मत ज्ञेयन में।। 5।॥।
जग को मुक्तिमार्ग दरशावे, काल अनंत परम सुख पावे।
यही स्व-पर कल्याण, फँसो मत ज्ञेयन में।। 6।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: Swarup Smaran